किस देश में वर्ग एवं धर्म के मध्य गहरी समानता है
Mohammed
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किस देश में वर्ग एवं धर्म के मध्य घड़ी समानता है? » Kis Desh Mein Varg Evam Dharam Ke Madhya Ghadi Samanata Hai
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किस देश में वर्ग एवं धर्म के मध्य घड़ी समानता है?...
समानता (समाज)धर्म का तत्त्वज्ञानजीवन जीने का तत्त्वज्ञान
Anshul Khatiyan
Tuitions
0:03
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बोलिविया देश Romanized Version 17 662 1 जवाब
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'धर्मों के बीच समानता अधिक'
दिल्ली में आयोजित एक सर्वधर्म सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने कहा है कि सभी धर्मों का संदेश शांति है.
'धर्मों के बीच समानता अधिक'
अब्दुल वाहिद आज़ाद,
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, दिल्ली से
21 फ़रवरी 2010
यह बातें इस्लाम और दक्षिण एशियाई धर्मों के बीच संवाद की स्थापना और उनमें पाई जाने वाली ग़लतफ़हमियों को दूर करने के लिए आयोजित एक सर्वधर्म सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों ने कही.
इस दो दिवसीय सम्मेलन में सिर्फ़ और सिर्फ़ शांति की बात की गई, मज़हब के असल रुह और सिद्धांत को समझने पर ज़ोर दिया गया.
नफ़रत पर जीत पाने के लिए मौलाना अरशद मदनी ने नुस्ख़े भी पेश किए गए और कहा, "आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता है, अगर हमें सांप्रदायिकता को मिटाना है तो प्यार और मोहब्बत के दीपक जलाने होंगे."
मोहब्बत का पैग़ामउप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी सम्मेलन को संबोधित किया और कहा कि मज़हब नफ़रत और दुश्मनी की शिक्षा नहीं देता और इस पैग़ाम को आम लोगों के बीच ले जाने की आवश्यकता है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि आख़िर ऐसा क्या हुआ कि धर्म शांति का पैग़ाम देने के बजाए नफ़रत पैदा करने के हथियार बन गए.
सम्मेलन में मौजूद पाकिस्तान के सांसद और सिख समुदाय से प्रतिनिधि रैश कुमार ने कहा, "इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय राजनीति होती हैं, लेकिन सभी धर्मों में एक बात तो समान है कि शांति होनी चाहिए और हम इसपर काम कर सकते हैं."
मेहमान प्रतिनिधि का कहना था कि अगर अमन हो जाए तो सारे मसले का हल निकल सकता है.
धर्मों के बीच खाई के मुद्दे पर सम्मेलन के मुख्य आयोजक ज़फ़रुल इस्लाम ख़ान कहते हैं, "धर्मों में समानता बहुत ही अधिक हैं और विराधाभास बहुत ही कम हैं."
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उनका कहना था कि धर्मों के बीच विरोधाभास के बावजूद एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए और ऐसा मुमकिन है.
शांति स्थापित करने का रास्ता आर्ट ऑफ़ लीविंग के सदस्य स्वामी सदयोजथाह ने भी पेश किया.
उनका कहना था, "धर्म में मूल्य, प्रतीक और अनुष्ठान जैसी तीन बुनियादी चीज़ें हैं. सभी धर्मों के प्रतीक और अनुष्ठान अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मूल्य यानी संदेश एक है, शांति का. और इस पर सभी इकट्ठा हो सकते हैं."
सम्मेलन में भारत के सुनहरे दौर का ज़िक्र करते हुए मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यहाँ की मिट्टी में प्यार और मोहब्बत है और सदियों से सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते रहे हैं, इतिहास इसका गवाह है.
कुछ उदाहरण पेश करते हुए मौलाना अरशद मदनी ने कहा, "महाराजा रणजीत सिंह जैसे कट्टर हिंदू राजा के यहाँ मुसलमान मंत्री थे वहीं अकबर के दरबार में भी हिंदू वज़ीर थे."
उनका कहना था कि हमें अपने अतीत में झांकने की आवश्यकता है ताकि प्यार के पुराने दौर को एक बार पा लिया जाए.
इस सम्मेलन में पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया से हिंदू,सिख, ईसाई, जैन, इस्लाम और बौद्ध मतों के बड़ी तादाद में प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और सबने शांति की बात की.
भारत में लैंगिक असमानता
भारत में लैंगिक असमानता
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"भारत में लैंगिक असमानता" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR)
अनुक्रम
1 लैंगिक असमानता का कारण
2 लैंगिक असमानता से तात्पर्य
3 लैंगिक असमानता के विभिन्न क्षेत्र
4 भारत में लैंगिक असमानता के कारण और प्रकार
5 लैंगिक असमानता के कारक
6 लैंगिक असमानता के खिलाफ कानूनी और संवैधानिक सुरक्षा उपाय
7 हम लैंगिक समानता कैसे समाप्त कर सकते हैं
8 आगे की राह 9 इन्हें भी देखें 10 सन्दर्भ
लैंगिक असमानता का कारण[संपादित करें]
हम 21वीं शताब्दी के भारतीय होने पर गर्व करते हैं जो एक बेटा पैदा होने पर खुशी का जश्न मनाते हैं और यदि एक बेटी का जन्म हो जाये तो शान्त हो जाते हैं यहाँ तक कि कोई भी जश्न नहीं मनाने का नियम बनाया गया हैं। लड़के के लिये इतना ज्यादा प्यार कि लड़कों के जन्म की चाह में हम प्राचीन काल से ही लड़कियों को जन्म के समय या जन्म से पहले ही मारते आ रहे हैं, यदि सौभाग्य से वो नहीं मारी जाती तो हम जीवनभर उनके साथ भेदभाव के अनेक तरीके ढूँढ लेते हैं।
लैंगिक असमानता की परिभाषा और संकल्पना‘लिंग’ सामाजिक-सांस्कृतिक शब्द हैं, सामाजिक परिभाषा से संबंधित करते हुये समाज में ‘पुरुषों’ और ‘महिलाओं’ के कार्यों और व्यवहारों को परिभाषित करता हैं, जबकि, 'सेक्स' शब्द ‘आदमी’ और ‘औरत’ को परिभाषित करता है जो एक जैविक और शारीरिक घटना है। अपने सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं में, लिंग पुरुष और महिलाओं के बीच शक्ति के कार्य के संबंध हैं जहाँ पुरुष को महिला से श्रेंष्ठ माना जाता हैं। इस तरह, ‘लिंग’ को मानव निर्मित सिद्धान्त समझना चाहिये, जबकि ‘सेक्स’ मानव की प्राकृतिक या जैविक विशेषता हैं।लिंग असमानता को सामान्य शब्दों में इस तरह परिभाषित किया जा सकता हैं कि, लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव। समाज में परम्परागत रुप से महिलाओं को कमजोर जाति-वर्ग के रुप में माना जाता हैं
लैंगिक असमानता से तात्पर्य[संपादित करें]
लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है। परंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है।
वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया में हर जगह प्रचलित है।
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक- 2020 में भारत 153 देशों में 112वें स्थान पर रहा। इससे साफ तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश में लैगिंक भेदभाव की जड़ें कितनी मजबूत और गहरी है।
लैंगिक असमानता के विभिन्न क्षेत्र[संपादित करें]
सामाजिक क्षेत्र में- भारतीय समाज में प्रायः महिलाओं को घरेलू कार्य के ही अनुकूल माना गया है। घर में महिलाओं का मुख्य कार्य भोजन की व्यवस्था करना और बच्चों के लालन-पालन तक ही सीमित है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि घर में लिये जाने वाले निर्णयों में भी महिलाओं की कोई भूमिका नहीं रहती है। महिलाओं के मुद्दों से संबंधित विभिन्न सामाजिक संगठनों में भी महिलाओं की न्यूनतम संख्या लैंगिक असमानता के विकराल रूप को व्यक्त करती है।आर्थिक क्षेत्र में- आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत महिला और पुरुष के पारिश्रमिक में अंतर है। औद्योगिक क्षेत्र में प्रायः महिलाओं को पुरुषों के सापेक्ष कम वेतन दिया जाता है। इतना ही नहीं रोज़गार के अवसरों में भी पुरुषों को ही प्राथमिकता दी जाती है।राजनीतिक क्षेत्र में- सभी राजनीतिक दल लोकतांत्रिक होते हुए समानता का दावा करते हैं परंतु वे न तो चुनाव में महिलाओं को प्रत्याशी के रूप में टिकट देते हैं और न ही दल के प्रमुख पदों पर उनकी नियुक्ति करते हैं।विज्ञान के क्षेत्र में- जब हम वैज्ञानिक समुदाय पर ध्यान देते हैं तो यह पाते हैं कि प्रगतिशीलता की विचारधारा पर आधारित इस समुदाय में भी स्पष्ट रूप से लैंगिक असमानता विद्यमान है। वैज्ञानिक समुदाय में या तो महिलाओं का प्रवेश ही मुश्किल से होता है या उन्हें कम महत्त्व के प्रोजेक्ट में लगा दिया जाता है। यह विडंबना ही है कि हम मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध स्वर्गीय ए. पी.जे अब्दुल कलाम से तो परिचित हैं लेकिन मिसाइल वुमेन ऑफ इंडिया टेसी थॉमस के नाम से परिचित नहीं हैं।मनोरंजन क्षेत्र में- मनोरंजन के क्षेत्र में अभिनेत्रियों को भी इस भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। अक्सर फिल्मों में अभिनेत्रियों को मुख्य किरदार नहीं समझा जाता और उन्हें पारिश्रमिक भी अभिनेताओं की तुलना में कम मिलता है।खेल क्षेत्र में- खेलों में मिलने वाली पुरस्कार राशि पुरुष खिलाड़ियों की बजाय महिला खिलाड़ियों को कम मिलती हैं। चाहे कुश्ती हो या क्रिकेट हर खेल में भेदभाव हो रहा है। इसके साथ ही, पुरुषों के खेलों का प्रसारण भी महिलाओं के खेलों से ज्यादा है।
भारत में लैंगिक असमानता के कारण और प्रकार[संपादित करें]
भारतीय समाज में लिंग असमानता का मूल कारण इसकी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में निहित है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री सिल्विया वाल्बे के अनुसार, “पितृसत्तात्मकता सामाजिक संरचना की ऐसी प्रक्रिया और व्यवस्था हैं, जिसमें आदमी औरत पर अपना प्रभुत्व जमाता हैं, उसका दमन करता हैं और उसका शोषण करता हैं।” महिलाओं का शोषण भारतीय समाज की सदियों पुरानी सांस्कृतिक घटना है। पितृसत्तात्मकता व्यवस्था ने अपनी वैधता और स्वीकृति हमारे धार्मिक विश्वासों, चाहे वो हिन्दू, मुस्लिम या किसी अन्य धर्म से ही क्यों न हों, से प्राप्त की हैं।I
उदाहरण के लिये, प्राचीन भारतीय हिन्दू कानून के निर्माता मनु के अनुसार, “ऐसा माना जाता हैं कि औरत को अपने बाल्यकाल में पिता के अधीन, शादी के बाद पति के अधीन और अपनी वृद्धावस्था या विधवा होने के बाद अपने पुत्र के अधीन रहना चाहिये। किसी भी परिस्थिति में उसे खुद को स्वतंत्र रहने की अनुमति नहीं हैं।”
मुस्लिमों में भी समान स्थिति हैं और वहाँ भी भेदभाव या परतंत्रता के लिए मंजूरी धार्मिक ग्रंथों और इस्लामी परंपराओं द्वारा प्रदान की जाती है। इसी तरह अन्य धार्मिक मान्याताओं में भी महिलाओं के साथ एक ही प्रकार से या अलग तरीके से भेदभाव हो रहा हैं।महिलाओं के समाज में निचला स्तर होने के कुछ कारणों में से अत्यधिक गरीबी और शिक्षा की कमी भी हैं। गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण बहुत सी महिलाएं कम वेतन पर घरेलू कार्य करने, संगठित वैश्यावृति का कार्य करने या प्रवासी मजदूरों के रुप में कार्य करने के लिये मजबूर होती हैं
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