नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल। अली कली ही सौं बिध्यौं, आगे कौन हवाल।। प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
Mohammed
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'नहिं पराग नहिं मधुर मधु,
'नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नही विकास इहि काल। अली कली ही सौं बिध्यों,
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'नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नही विकास इहि काल।
अली कली ही सौं बिध्यों, आगे कौन हवाल।। प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा अलंकार है ?
रूपक विशेषोक्ति अन्योक्ति अतिशयोक्ति
सही विकल्प: C
'नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नही विकास इहि काल। अली कली ही सौं बिध्यों, आगे कौन हवाल।। प्रस्तुत पंक्तियों में अन्योक्ति अलंकार है। जहां प्रस्तुति उक्ति से कोई अप्रस्तुत अर्थ भी निकले और प्रस्तुत की अपेक्षा वह अप्रस्तुत अर्थ प्रधान हो वहां अन्योक्ति अलंकार होगा।
स्रोत : hindi.interviewmania.com
नहिं परागु नहिं मधुर मधु
नहिं परागु नहिं मधुर मधु - बिहारी संपूर्ण दोहा हिन्दवी पर उपलब्ध हैं।
नहिं परागु नहिं मधुर मधु
बिहारी
नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।
अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥
नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है। अरे भौरे! अभी तो यह एक कली मात्र है। तुम अभी से इसके मोह में अंधे बन रहे हो। जब यह कली फूल बनकर पराग तथा मकरंद से युक्त होगी, उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? अर्थात् जब नायिका यौवन संपन्न सरसता से प्रफुल्लित हो जाएगी, तब नायक की क्या दशा होगी?
स्रोत :
पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 190) रचनाकार : डॉ. हरिचरण शर्मा प्रकाशन : श्याम प्रकाशन संस्करण : 2007संबंधित विषय
फूल नीति
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बिहारी के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ दोहे
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जब बिहारी ने अपने दोहे से राजा को समझाया कि वह रानी पर इतना ध्यान न दें कि राज्य चौपट हो जाए
Bihari ke dohe जब बिहारी ने अपने दोहे से राजा को समझाया कि वह रानी पर इतना ध्यान न दें कि राज्य चौपट हो जाए नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल अली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल. Read more about bihari ke dohe, bihari ka doha, bihari doha on amar ujala kavya.
जब बिहारी ने अपने दोहे से राजा को समझाया कि वह रानी पर इतना ध्यान न दें कि राज्य चौपट हो जाए
दीपाली अग्रवाल
Kavya Charcha
बिहारी शाहजहाँ के समकालीन थे और राजा जयसिंह के राजकवि थे। राजा जयसिंह अपने विवाह के बाद अपनी नव-वधू के प्रेम में राज्य की तरफ बिलकुल ध्यान नहीं दे रहे थे तब बिहारी ने उन्हें यह दोहा सुनाया था-
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि कालअली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल
अर्थात – न हीं इस काल में फूल में पराग है, न तो मीठी मधु ही है। अगर अभी से भौंरा फूल की कली में ही खोया रहेगा तो आगे न जाने क्या होगा। दूसरे शब्दों में, 'हे राजन अभी तो रानी नई-नई हैं, अभी तो उनकी युवावस्था आनी बाकी है। अगर आप अभी से ही रानी में खोए रहेंगे, तो आगे क्या हाल होगा।
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजातकहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात
अर्थ :इस दोहे में कवि ने उस नायिका की मन:स्थिति का चित्रण किया है जो अपने प्रेमी के लिए संदेश भेजना चाहती है। नायिका को इतना लम्बा संदेश भेजना है कि वह कागज़ पर समा नहीं पाएगा। लेकिन अपने संदेशवाहक के सामने उसे वह सब कहने में शर्म भी आ रही है। नायिका संदेशवाहक से कहती है कि तुम मेरे अत्यंत करीबी हो इसलिए अपने दिल से तुम मेरे दिल की बात कह देना।
सुनी पथिक मुँह माह निसि लुवैं चलैं वहि ग्रामबिनु पूँछे, बिनु ही कहे, जरति बिचारी बाम
विरह की आग में जल रही प्रेमिका के अंदर इतनी अग्नि होती है मानो माघ के माह में भी लू सी ताप रही हो जैसे की वो किसी लुहार की धौकनी हो |
कहति नटति रीझति खिझति, मिलति खिलति लजि जातभरे भौन में होत है, नैनन ही सों बात
अर्थ- नायिका नायक से बातें करती है, नाटक करती है, रीझती है, नायक से थोड़ा खीझती है, वह नायक से मिलती है, ख़ुशी से खिल जाती है और शरमा जाती है। भरी महफिल में नायक और नायिका के बीच में आँखों से ही बातें होती है।
कोटि जतन कोऊ करै, परै न प्रकृतिहिं बीचनल बल जल ऊँचो चढ़ै, तऊ नीच को नीच
अर्थात् कोई कितना भी प्रयत्न करे किन्तु मनुष्य के स्वभाव में अन्तर नहीं पड़ता। नल के बल से पानी ऊपर तो चढ़ जाता है किन्तु फिर भी अपने स्वभाव के अनुसार नीचे ही बहता है।
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3 YEARS AGO
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