हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता क्यों कहा जाता है
Mohammed
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सिंधु घाटी सभ्यता
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आलेख सिंधु घाटी सभ्यता वीकी पीडिया 23 जुल॰ 2010 •
Indus valley civilisation
सिंधु घाटी सभ्यता (३३००-१७०० ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। यह हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। [१] मोहनजोदड़ो, कालीबंगा ,लोथल् , धोलावीरा , राखीगरी , और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थें। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं। चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने १८७२ में इस सभ्यता के बारे मे सर्वेक्षण किया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे मे एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया। यह सभ्यता सिंधु नदी घाटी मे फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरो के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोज जा सका है जिसमे से ९२५ केन्द्र भारत मे है। ८० प्रतिशत्त स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियो के आस-पास है। अभी तक कुल खोजो मे से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है।नामोत्पत्ति
सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक था। आरम्भ में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। अतः विद्वानों ने इसे सिंधु घाटी की सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि ये क्षेत्र सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, वनमाली, रंगापुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः इतिहासकार इस सभ्यता का प्रमुख केन्द्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को हड़प्पा की सभ्यता नाम देना अधिक उचित मानते हैं।
खोज और उत्खनन
विभिन्न कालDate range (BCE)PhaseEra5500-3300
Mehrgarh II-VI (Pottery Neolithic)
Regionalisation Era
3300-2600Early Harappan (Early Bronze Age)3300-2800
Harappan 1 (Ravi Phase)
2800-2600
Harappan 2 (Kot Diji Phase, Nausharo I, Mehrgarh VII)
2600-1900Mature Harappan (Middle Bronze Age)Integration Era 2600-2450
Harappan 3A (Nausharo II)
2450-2200 Harappan 3B 2200-1900 Harappan 3C
1900-1300Late Harappan (Cemetery H, Late Bronze Age)Localisation Era 1900-1700 Harappan 4 1700-1300 Harappan 5
विस्तार
इस सभ्यता का क्षेत्र संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं के क्षेत्र से अनेक गुना बड़ा और विशाल था।[२] इस परिपक्व सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ। इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था। यह सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है और इसका क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर है। इस तरह यह क्षेत्र आधुनिक पाकिस्तान से तो बड़ा है ही, प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा है। ईसा पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्त्राब्दी में संसार भार में किसी भी सभ्यता का क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति से बड़ा नहीं था। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस संस्कृति के कुल 1000 स्थलों का पता चल चुका है। इनमें से कुछ आरंभिक अवस्था के हैं तो कुछ परिपक्व अवस्था के और कुछ उत्तरवर्ती अवस्था के। परिपक्व अवस्था वाले कम जगह ही हैं। इनमें से आधे दर्जनों को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है। इनमें से दो नगर बहुत ही महत्वपूर्ण हैं - पंजाब का हड़प्पा तथा सिन्ध का मोहें जो दड़ो (शाब्दिक अर्थ - प्रेतों का टीला)। दोनो ही स्थल पाकिस्तान में हैं। दोनो एक दूसरे से 483 किमी दूर थे और सिंधु नदी द्वारा जुड़े हुए थे। तीसरा नगर मोहें जो दड़ो से 130 किमी दक्षिण में चन्हुदड़ो स्थल पर था तो चौथा नगर गुजरात के खंभात की खाड़ी के उपर लोथल नामक स्थल पर। इसके अतिरिक्त राजस्थान के उत्तरी भाग में कालीबंगां (शाब्दिक अर्थ -काले रंग की चूड़ियां) तथा हरियाणा के हिसार जिले का बनावली। इन सभी स्थलों पर परिपक्व तथा उन्नत हड़प्पा संस्कृति के दर्शन होते हैं। सुतकागेंडोर तथा सुरकोतड़ा के समुद्रतटीय नगरों में भी इस संस्कृति की परिपक्व अवस्था दिखाई देती है। इन दोनों की विशेषता है एक एक नगर दुर्ग का होना। उत्तर ङड़प्पा अवस्था गुजरात के कठियावाड़ प्रायद्वीप में रंगपुर और रोजड़ी स्थलों पर भी पाई गई है। इस सभ्य्ता की जाऩकारी सबसे पेहले १८२६ मे चाल्स्र् मैन को प्राप्त हुइ।
नगर निर्माण योजना
इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिंधु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहां के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहां के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत देख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान थे।
मोहन जोदड़ो का अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागार, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। यह ईंटो के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है। यब 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। दोनो सिरों पर तल तक जाने की सीढ़ियां लगी हैं। बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं। स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। पास के कमरे में एक बड़ा सा कुंआ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था। हौज़ के कोने में एक निर्गम (Outlet) है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था। ऐसा माना जाता है कि यह विशाल स्नानागर धर्मानुष्ठान सम्बंधी स्नान के लिए बना होगा जो भारत में पारंपरिक रूप से धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक रहा है। मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ा संरचना है - अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा है। हड़प्पा के दुर्ग में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पांतों में खड़े हैं। हर एक कोठार 15.23 मी. लंबा तथा 6.09 मी. चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछेक मीटर की दूरी पर है। इन बारह इकाईयों का तलक्षेत्र लगभग 838.125 वर्ग मी. है जो लगभग उतना ही होता है जितना मोहन जोदड़ो के कोठार का। हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है और इसपर दो कतारों में ईंट के वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं। फर्श की दरारों में गेहूँ और जौ के दाने मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि इन चबूतरों पर फ़सल की दवनी होती थी। हड़प्पा में दो कमरों वाले बैरक भी मिले हैं जो शायद मजदूरों के रहने के लिए बने थे। कालीबंगां में भी नगर के दक्षिण भाग में ईंटों के चबूतरे बने हैं जो शायद कोठारों के लिए बने होंगे। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कोठार हड़प्पा संस्कृति के अभिन्न अंग थे।
स्रोत : hindi.indiawaterportal.org
सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
उपरोक्त लेख में हमने बताया है कि सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से क्यों जाना जाता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
by Anshika Dabodiya •
गुरुवार, फ़रवरी 03, 2022
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आज मैं आपको बताऊंगी हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता क्यों कहा जाता है?सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
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आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व पहले सिंधु नदी के तट पर स्थित सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की आरंभिक, चार प्रमुख सभ्यताओं मे से एक थी।
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि हड़प्पा नामक स्थान पर ही सर्वप्रथम 1921 ईस्वी में राखलदास बनर्जी ने उत्खनन करवाया और नगर सभ्यता को प्रकाश में लाया। इसके बाद ही अन्य स्थानों पर पुरातात्विक खुदाई की गई।
"सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे महत्वपूर्ण नगर होने तथा हड़प्पा में ही इस सभ्यता का उत्खनन हुआ इसके चलते ही इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है"।Also read :हिंदू पौराणिक कथाओं में इतनी सारी यौन कहानियां क्यों शामिल हैं?
यह एक नगरीय सभ्यता थी। क्योंकि पुरातत्व विद्वानों द्वारा सर्वप्रथम हड़प्पा सभ्यता में हड़प्पा नगर की खोज की गई। सर्वप्रथम हड़प्पा नगर की खोज की गई इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
हड़प्पा सभ्यता की खोज काश ए राय बहादुर दयाराम स्वामी को जाता है, क्योंकि दयाराम स्वामी ने ही 1921 ईस्वी में ही पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रावी नदी के तट पर स्थित हड़प्पा नामक स्थल पर पुरातत्विक उत्खनन करके कई हड़प्पे मोहरे एवं अन्य हड़प्पा अवशेष प्राप्त किए। जिसके फलस्वरूप हड़प्पा की खोज हुई।
वही दूसरे वर्ष भी यानी 1922 ईस्वी में "राखल दास बनर्जी"ने मोहनजोदड़ो नगर की खोज की। मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लड़खाना जिले के सिंधु नदी के तट पर स्थित था।
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इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता का उद्भव हुआ तथा फिर यहां हुए पुरातत्विक उत्खनन में एक के बाद एक नगर प्राप्त हुए।
विकट महोदय ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत राज्य की जुड़वा राजधानी बताया है।
इनके बीच की दूरी 670 किलोमीटर दूर है।
यह पूरी सभ्यता त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई थी।
इस सभ्यता का क्षेत्रफल मिस्र से 30 गुना ज्यादा तथा मिस्र और मिश्रो पोटो मियां दोनों के सम्मिलित 12 गुना अधिक है।
दोस्तों आज हम जिस प्रकार की जिंदगी जी रहे हैं इससे बेहतर और समृद्ध जिंदगी तो हजारों साल पहले हड़प्पा सभ्यता के लोग जिया करते थे। जो आज से लगभग 4600 साल पहले इस मिट्टी में दफन हो गए।
मोहनजोदड़ो ,कालीबंगा,बनवाली और धोलावीरा हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल रहे।Also read :खुदीराम बोस क्रांतिकारी जो 18 की उम्र में हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ गया। क्यों हम उसे स्कूलो में नही पढाते?
पुरातत्व वैज्ञानिकों ने लगभग 280 हड़प्पा सभ्यता के क्षेत्रों का पता लगाया है। इन सभी सदस्यों से हड़प्पा सभ्यता से संबंधित अनेक वस्तुएं प्राप्त हुए हैं जिनसे हम में हड़प्पा सभ्यता में रहन सहन के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
आज के लेख में इतना ही उम्मीद करती हूं आपको आपके सवालों के जवाब मिल गए होंगे।
दोस्तों आशा करती हूं आज की जानकारी आपको पसंद आई होगी ऐसे ही इंटरेस्टिंग और महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर आए।
दोस्तों मिलते हैं एक और इंटरेस्टिंग जानकारी के साथ तब तक अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें अपने चारों तरफ सफाई बनाए रखें धन्यवाद।
आपके दोस्त पुष्पा डाबोदिया।।
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सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
जवाब (19 में से 1): सिंधु सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी ज्ञात शहरी संस्कृति है। सभ्यता की परमाणु तिथियां लगभग 2500-1700 ईसा पूर्व प्रतीत होती हैं, हालांकि दक्षिणी स्थल बाद में दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में चले गए होंगे। सभ्यता ...
सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
छांटें गिरीश चन्द्र
प्रयागराज (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश, भारत से MAप्राचीनइतिहास नेटयूजीसी (1989 में स्नातक)लेखक ने 299 जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 9.2 लाख बार देखा गया है1वर्ष
क्योंकि वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोन्टीगोमरी (वर्तमान नाम-शाहीवाल)में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित हड़प्पा नामक स्थान से इस सभ्यता से सम्बंधित साक्ष्य सबसे पहले प्राप्त हुए। 1826ई. में चार्ल्स मेसन ने सबसे पहले हड़प्पा के टीले के बारे में लिखा और सर्वप्रथम 1821 ई. में सर् जॉन मार्शल के नेतृत्त्व में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खुदाई करवाई।
संबंधित सवाल
सिंधु सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है?
हड़प्पा सभ्यता का नाम हड़प्पा कैसे पड़ा ?
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार कहाँ तक था ?
हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक जीवन कैसा था?
सभ्यता किसे कहा जाता है ?
अजय कुमार
अभियंता कार्यलेखक ने 660 जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 24.2 लाख बार देखा गया है1वर्ष
सिंधु सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी ज्ञात शहरी संस्कृति है। सभ्यता की परमाणु तिथियां लगभग 2500-1700 ईसा पूर्व प्रतीत होती हैं, हालांकि दक्षिणी स्थल बाद में दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में चले गए होंगे।
सभ्यता की पहचान पहली बार 1921 में पंजाब क्षेत्र के हड़प्पा में और फिर 1922 में सिंध (सिंध) क्षेत्र में सिंधु नदी के पास मोहनजोदड़ो (मोहनजोदड़ो) में हुई थी। दोनों साइटें वर्तमान पाकिस्तान में क्रमशः पंजाब और सिंध प्रांतों में हैं। मोहनजोदड़ो के खंडहरों को 1980 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था।
इसके बाद,
Mubashshirah Rehmat Nomani
इस्लाम के बारे में जो भी गलतफेह्मिया है उन्हें दूर करना पसंलेखक ने 1 हज़ार जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 3 लाख बार देखा गया है2वर्ष
जहां ये सिंधु घाटी सभ्यता खोजी गई थी उस जगह का नाम हड़प्पा था इस्रलिये इस नाम की वजह से ही इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है। और ये taqriban 8000 साल पुरानी सभ्यता थी
Govinda Choudhary विद्यार्थी1वर्ष
प्रारम्भिक उत्खनन में प्राप्त अधिकतर स्थल सिंधु नदी के आस पास से प्राप्त हुए, जिस कारण इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता दिया गया जो कि इसके भूगोलिक स्थिति को इंगित करता था
लेकिन बाद में बहुत सारे स्थल सरस्वती घाटी, यमुना घाटी और गोदावरी घाटी से प्राप्त हुए, इसके बाद सिंधु घाटी सभ्यता नाम भूगोलिक दृष्टि से गलत साबित हो गया,
इन्ही कारणों से इस सभ्यता के प्रथम खोजे गए स्थल हड़प्पा के नाम पर इसे नया नाम मिला जो हड़प्पा सभ्यता था, इस सभ्यता के और भी अन्य नाम है जैसे सैंधव सभ्यता
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