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    bhasha ke aadhar par bharat ka pratham rajya kab banaya gaya tha

    Mohammed

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    भाषाई आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य कौन सा था I

    भाषाई आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य कौन सा था I

    Byju's Answer Standard V Mathematics

    Multiplication of Fractions

    भाषाई आधार पर... Question

    भाषाई आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य कौन सा था ?

    A आंध्र प्रदेश B कर्नाटक C महाराष्ट्र D तमिल नाडु Open in App Solution

    1 अक्टूबर 1953 को आंध्र प्रदेश भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य बना I

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    राज्य पुनर्गठन आयोग

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    वर्ष १९५१ में भारत के प्रशासनिक प्रभाग

    भारत के स्वतंत्र होने के बाद भारत सरकार ने अंग्रेजी राज के दिनों के 'राज्यों' को भाषायी आधार पर पुनर्गठित करने के लिये राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) की स्थापना 1953 में की। 1950 के दशक में बने पहले राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश में राज्यों के बंटवारे का आधार भाषाई था। इसके पीछे तर्क दिया गया कि स्वतंत्रता आंदोलन में यह बात उठी थी कि जनतंत्र में प्रशासन को आम लोगों की भाषा में काम करना चाहिए, ताकि प्रशासन लोगों के नजदीक आ सके।पंजाब मे सभी विश्वविद्यालय में अनेक भाषाओं में एजूकेशन दिया जाता है।पंजाब का नवीनतम जिला मलेरकोटला है।

    इतिहास[संपादित करें]

    अंग्रेजों से पहले का भारत 21 प्रशासनिक इकाइयों (सूबों) में बँटा हुआ था। इनमें से कई सूबों की सांस्कृतिक पहचान सुस्पष्ट थी और कुछ में संस्कृतियों का मिश्रण था। किन्तु भारत को अपना उपनिवेश बनाने के बाद अंग्रेजों ने प्रशासनिक सुविधा का खयाल करते हुए मनमाने तरीके से भारत को नये सिरे से बड़े-बड़े प्रांतों में बाँटा। एक भाषा बोलने वाल तरह भंग कर दी गयी। बहुभाषी व बहुजातीय प्रांत बनाये गये। इतिहासकारों की मान्यता है कि भले ही इन प्रांतों को ‘फूट डालो और राज करो’ के हथकंडे का इस्तेमाल करके नहीं बनाया गया था, पर उनमें अपनी सत्ता टिकाये रखने के लिए अंग्रेजों ने इस नीति का जम कर उपयोग किया।

    1920 के दशक में जैसे ही गाँधी के हाथ में कांग्रेस का नेतृत्व आया, आजादी के आंदोलन की अगुआयी करने वाले लोगों को लगा कि जातीय-भाषाई अस्मिताओं पर जोर दे कर वे उपनिवेशवाद विरोधी मुहिम को एक लोकप्रिय जनाधार दे सकते हैं। अतः कांग्रेस ने अंग्रेजों द्वारा रचे गये ‘औपनिवेशिक प्रांत’ की जगह ख़ुद को ‘प्रदेश’ नामक प्रशासनिक इकाई के इर्द-गिर्द संगठित किया। यह ‘प्रदेश’ नामक इकाई अपने बुनियादी चरित्र में अधिक लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक (जातीय और भाषाई) अस्मिता के प्रति अधिक संवेदनशील और क्षेत्रीय अभिजनों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के प्रति जागरूक थी। इस तरह 'नये भारत' की कल्पनाशीलता को उसका आधार मिला। कांग्रेस के इस पुनर्गठन के बाद राष्ट्रीय आंदोलन भाषाई अस्मिताओं से सुनियोजित पोषण प्राप्त करने लगा। प्रथम असहयोग आंदोलन की जबरदस्त सफलता के पीछे मुख्य कारण यही था। 1928 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसे काग्रेस का पूरा समर्थन था। इस समिति ने भाषा, जन-इच्छा, जनसंख्या, भौगोलिक और वित्तीय स्थिति को राज्य के गठन का आधार माना।

    1947 में भारत को आजादी मिलते ही भारत के सामने 562 देशी रियासतों के एकीकरण व पुनर्गठन का सवाल मुंह बाए खड़ा था। इसे ध्यान में रखते हुए इसी साल श्याम कृष्ण दर आयोग का गठन किया गया। दर आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया था। उसका मुख्य जोर प्रशासनिक सुविधाओं को आधार बनाने पर था। किन्तु तत्कालीन जनाकाक्षाओं को देखते हुए ही तत्काल उसी वर्ष जेबीपी आयोग (जवाहर लाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल, पट्टाभिसीतारमैया) का गठन किया गया। जिसने प्रभावित जनता की आपसी सहमति, आर्थिक और प्रशासनिक व्यवहार्यता पर जोर देते हुए भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का सुझाव दिया। इसके फलस्वरूप सबसे पहले 1953 में आंध्र प्रदेश का तेलुगुभाषी राज्य के तौर पर गठन किया गया। ध्यातव्य है कि सामाजिक कार्यकर्ता पोट्टी श्रीरामलू की मद्रास से आंध्र प्रदेश को अलग किए जाने की मांग को लेकर 58 दिन के आमरण अनशन के बाद मृत्यु हो गयी थी जिसने अलग तेलुगू भाषी राज्य बनाने पर मजबूर कर दिया था।

    22 दिसम्बर 1953 में न्यायाधीश फजल अली की अध्यक्षता में प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ। इस आयोग के तीन सदस्य - न्यायमूर्ति फजल अली, हृदयनाथ कुंजरू और केएम पाणिक्कर थे। इस आयोग ने 30 दिसंबर 1955 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस आयोग ने राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक और वित्तीय व्यवहार्यता, आर्थिक विकास, अल्पसंख्यक हितों की रक्षा तथा भाषा को राज्यों के पुनर्गठन का आधार बनाया। सरकार ने इसकी संस्तुतियों को कुछ सुधार के साथ मंजूर कर लिया। जिसके बाद 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम संसद ने पास किया। इसके तहत 14 राज्य तथा 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए। फिर 1960 में पुनर्गठन का दूसरा दौर चला। 1960 में बम्बई राज्य को विभाजित करके महाराष्ट्र और गुजरात का गठन हुआ। 1963 में नगालैंड गठित हुआ। 1966 में पंजाब का पुनर्गठन हुआ और उसे पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में तोड़ दिया गया। 1972 में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा बनाए गए। 1987 में मिजोरम का गठन किया गया और केन्द्र शासित राज्य अरूणाचल प्रदेश और गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। वर्ष 2000 में उत्तराखण्ड, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आए तथा इसके बाद 2जून 2014 को तेलंगाना 29 वां राज्य बना जो आन्ध्रप्रदेश राज्य से अलग होगया।

    बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

    भारतीय संघ एवं राज्यों का पुनर्गठन

    राज्यों के पुनर्गठन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण जानकारी और तथ्‍य

    १९५० के बाद नये राज्यों की स्थापना

    भारतीय राज्यों का गठन/पुनर्गठन

    [छुपाएँ] देवासं भारतीय आयोग स्थाई

    • भारतीय निर्वाचन आयोग  • धार्मिक अल्पसंख्यक आयोग  • परिसीमन आयोग  • सरकारिया आयोग  • लिब्रहान आयोग  • राष्ट्रीय श्रम आयोग  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (भारत)  • राष्ट्रीय पुलिस आयोग  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (भारत)  • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग  • रेलवे सुरक्षा आयोग  • राष्ट्रीय महिला आयोग  • संघ लोक सेवा आयोग  • भारतीय विधि आयोग  • राज्य पुनर्गठन आयोग

    श्रेणियाँ: भारत के सरकारी आयोगभारत सरकार

    स्रोत : hi.wikipedia.org

    भाषा के आधार पर हुआ था देश में राज्यों का गठन, जानिए, कैसे 65 साल में 14 से 28 हुए राज्य, केंद्र शासित प्रदेश भी बढ़े

    भाषा पर विवाद या बहस का मुद्दा कोई नया नहीं है. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन की बात सामने आई थी, तब भी ये विषय बड़ा मुद्दा बना था.

    भाषा के आधार पर हुआ था देश में राज्यों का गठन, जानिए, कैसे 65 साल में 14 से 28 हुए राज्य, केंद्र शासित प्रदेश भी बढ़े

    अम्‍बर बाजपेयी

    Updated on: May 30, 2022 | 11:15 AM

    भाषा पर विवाद या बहस का मुद्दा कोई नया नहीं है. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन की बात सामने आई थी, तब भी ये विषय बड़ा मुद्दा बना था.

    1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने सबसे पहले भाषा के आधार पर ही 14 राज्य और छह केंद्र शासित प्रदेश बनाए थे.

    Image Credit source: tv9

    भाषा (Language) को विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख माध्यम माना जाता है, मगर देश में भाषा को लेकर एक अलग ही बहस छिड़ी है, पिछले दिनों साउथ सुपरस्टार किच्चा सुदीप और अजय देवगन (Ajay Devgn) के बीच भी ऐसी ही एक बहस हुई थी, जो अब शांत हो चुकी है, लेकिन तमाम अभिनेता और नेता अभी भी इस पर बयान दे रहे हैं, हालांकि ये विवाद या बहस का मुद्दा नया नहीं है. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन की बात सामने आई थी, तब भी ये विषय बड़ा मुद्दा बना था. उस समय भाषा के आधार पर राज्यों का बंटवारा करने की मांग ने जोर पकड़ा था. 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने सबसे पहले भाषा के आधार पर ही 14 राज्य और छह केंद्र शासित प्रदेश बनाए थे, बाद में भाषा के आधार पर ही समय-समय पर इनका बंटवारा करने की मांग होती रही और 65 साल में ये राज्य 14 से 28 हो गए, केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या भी बढ़ गई.

    जब भाषा के आधार पर बंटवारे से कर दिया गया था इंकार

    लोकसभा सचिवालय की 2014 में प्रकाशित सूचना बुलेटिन के मुताबिक आजादी से पहले और बाद में 1956 तक देश में प्रांतीय व्यवस्था लागू थी, पांच सौ ज्यादा रियासतें थीं, जिन्हें राज्यों के तौर पर गठित किया जाना था, लेकिन सवाल ये था कि इनका गठन किस आधार पर किया जाए, भाषा के आधार पर राज्यों के गठन पर लगातार जोर दिए जाने पर संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने 1948 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एस. के. धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की, जिसने इसका विरोध किया. इसके बाद जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल तथा पट्टाभि सीतारमैया की एक जेवीपी समिति बनाई गई. इस समिति का काम राज्यों के गठन का मुख्य आधार खोजना था, इस इस समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में भाषाई आधार पर राज्यों को बांटने का विरोध किया और आर्थिक और प्रशासनिक आधार पर राज्यों का सीमांकन करने की सिफारिश की.

    तेलुगू भाषियों ने सबसे पहले किया आंदोलन

    जेवीपी समिति की ओर से भाषाई आधार पर राज्यों के बंटवारे से इन्कार करने के बाद तेलुगू भाषियों ने आंदोलन शुरू कर दिया. अक्टूबर 1952 में पोट्टी श्रीरामलू ने आमरण अनशन शुरू किया और 56 वें दिन उनका निधन हो गया. वह तेलुगू भाषियों के लिए मद्रास प्रेसीडेंसी से अलग राज्य की मांग कर रहे थे, श्री राम लू की मौत के बाद आंदोलनों ने हिंसक रूप ले लिया और 1953 में तत्कालीन सरकार को मजबूरन तेलुगू भाषियों के लिए अलग राज्य आंध्रप्रदेश की घोषणा करनी पड़ी.

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    दक्षिण से पूरे देश में फैला आंदोलन

    आंध्रप्रदेश का गठन होने के बाद आंदोलन पूरे देश में फैल गया, अन्य क्षेत्रों में भी भाषाई आधार पर राज्यों की मांग जोर पकड़ने लगी, इसे देखते हुए 19 दिसंबर 1953 को पीएम जवाहर लाल नेहरू ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया, इस तीन सदस्यीय आयोग में जस्टिस सैय्यद फजल अली, हृदयनाथ कुंजरू और सरदार के एम. पणिक्कर थे. इस आयोग ने 1955 में अपनी सिफारिशें की थीं, 1956 में आयोग की रिपोर्ट को पारित कर दिया गया.

    रिपोर्ट में ये था जिक्र

    आयोग की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि 1951 की जनगणना के मुताबिक देश में 844 भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन 91 प्रतिशत लोग मात्र 14 भाषाएं बोलते हैं, इस आधार पर 14 राज्यों की अनुशंसा की जाती है, इनके भौगोलिक वितरण और भाषाई क्षेत्र में एकरूपता है और 90 प्रतिशत लोग भाषाई राज्य के पक्ष में हैं.

    1956 में बने थे 14 राज्य 6 केंद्र शासित प्रदेश

    राज्य पुनर्गठन आयोग और संविधान संशोधन अधिनियम के तहत उस समय आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, बंबई, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा जम्मू कश्मीर को राज्य तथा दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, अंडमान और निकोबार, और मालाबर तट के छोटे द्वीप मसलन लक्षद्वीप, मिनी कॉय और अमीनदिवी द्वीप शामिल किया गया था.

    1960 में गुजराती और मराठी भाषियों में छिड़ा विवाद

    आयोग को गठित होने के बाद चार साल तो शांति से बीते, लेकिन अंदरखाने राज्यों में भाषाई बंटवारे की मांग जोर पकड़ती रही, 1960 में गुजराती और मराठी भाषियों में विवाद छिड़ा, आखिरकार बंबई को महाराष्ट्र और गुजरात में बांट दिया गया.

    ऐसे बने अन्य राज्य

    1962 में- असम से नागालैंड को अलग करने के लिए नागा आंदोलन शुरू किया गया, लिहाजा असम राज्य से नगा हिल्स त्वेनसांग क्षेत्र को अलग कर नागालैंड नाम दिया गया.

    1966 में भाषाई आधार पर बंटवारे ने फिर जोर पकड़ा और पंजाब के दो हिस्से पंजाब और हरियाणा के रूप में हुए, चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया.

    स्रोत : www.tv9hindi.com

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    Mohammed 9 day ago
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