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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत. प्रश्न-अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से) प्रश्न 1. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है? उत्तर शहनाई […]
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16
August 16, 2018 by Raju
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत
These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत.
प्रश्न-अभ्यास(पाठ्यपुस्तक से)प्रश्न 1.शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तरशहनाई की दुनिया में डुमराँव को निम्न कारणों से याद किया जाता है
शहनाई की दुनिया में शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक बन गए।
शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग किया जाता है वह रीड नरकट (बेंत जाति का प्रसिद्ध पौधा) डुमराँव में सोन नदी के किनारे पर पाया जाता है।
भारतरत्न, संगीत-रसिकों के हृदय और संगीत के नायक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ।
प्रश्न 2.बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तरशहनाई ऐसा वाद्य है जिसे मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता है। मांगलिक अवसरों पर शहनाई बजाने की सदैव से परंपरा रही है। इस शहनाई बजाने की परंपरा में बिस्मिल्ला खाँ अपने सुर के कारण अब तक के इतिहास में सर्वोपरि रहे हैं। वे संगीत के नायक रहे हैं। उन्होंने सामान्य मांगलिक कार्यों से लेकर अनेक सुप्रसिद्ध मांगलिक कार्यों में शहनाई बजाई है। यही कारण है कि उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है।
प्रश्न 3.सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तरवैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। इसे संगीत शास्त्रों के अंतर्गत सुषिर-वाद्यों में गिना जाता है। सुषिर-वाद्य अर्थात् फेंककर बजाए जाने वाले वाय। ऐसे वाद्य जिनमें नाड़ी होती है उन्हें अरब में ‘नय’ बोलते हैं, जबकि शोहनये अर्थात शहनाई को सुषिर-वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई है।
प्रश्न 4.आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) “फटा सुर न बख्शें । लुगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।(ख) “मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ ।’उत्तरआशय है कि खुदा सुर को अच्छा बनाए रखे। यदि सुर बिगड़ गया, फट गया तो. सब कुछ चला गया क्योंकि उस्ताद जानते थे उनकी पहचान, उनका सम्मान सुर शहनाई ही है। लुंगी को तो बदला जा सकता है, सिली जा सकती है। लुंगी से सुर का कोई ताल-मेल नहीं है। सुर यदि एक बार फट गया, बिगड़ गया तो उसे बदला नहीं जा सकता है। यही कारण है कि वे खुदा से सुर को बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं।
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ नमाज के बाद सज़दे करते हैं कि खुदा उनके सुर को इतना प्रभावशाली बना दे कि जिसे सुनकर श्रोताओं की आँखों से भावनाओं के आँसू सच्चे मोती की तरह स्वाभाविक रूप से बह निकलें । हृदय से उनके सुर की प्रशंसा में उद्गार निकल पड़े।
प्रश्न 5.काशी में हो रहे कौन से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तरकाशी की लुप्त होती परंपराएँ बिस्मिल्ला को व्यथित करती थीं। वे परंपराएँ हैं
बिस्मिल्ला खाँ की पसंदीदा मलाई बरफ पक्का महल से गायब हो गई।
संगीत-साहित्य और अदब की वे सारी परंपराएँ लुप्त होती जा रही थीं जो खाँ साहब के लिए महत्त्वपूर्ण थीं।
कलकलाते घी में बनने वाली कुलसुम की कचौड़ी और जलेबी काशी में मिलना कठिन हो रही थीं।
गायकों के मन में संगतकारों के प्रति समाप्त होता हुआ सम्मान खाँ को व्यथित कर रहा था।
बिस्मिल्ला खाँ अपने व्यथित हृदय से कहते हैं कि घंटों रियाज़ को अब कौन पूछता है। कजली, चैती और अदब का जमाना कहाँ रहा है?
प्रश्न 6.पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर कह सकते हैं कि
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।उत्तर(क) बिस्मिल्ला खाँ अपने मज़हब के प्रति समर्पित थे। वे अपने धर्म और उत्सवों के प्रति गंभीरता से आस्था रखते थे। दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर दूरी तक पैदल रोते हुए नौहा बजाते थे। पाँचों वक्त की नमाज़ अदा करते थे। मुहर्रम-ताजिया में श्रद्धा से शिरकत करते थे।वे काशी में विश्वनाथ और बालाजी के प्रति अपार श्रद्धा रखते हुए वहाँ शहनाई बजाते थे और काशी से बाहर होने पर थोड़ी देर काशी के मंदिरों की ओर मुँह करके शहनाई बजाकर सफलता की कामना करते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि
बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ काशी में रहते हुए काशी की उन सभी परंपराओं का निर्वाह करते थे जो वहाँ प्रचलित थीं, चाहे वे किसी भी संप्रदाय की रही हों। वे सभी परंपराएँ उनके जीवन की अंग बन चुकी थीं।वे जिस श्रद्धा और आस्था से मुहर्रम और ताजिया के समय मातम वाली शहनाई की धुन बजाते थे, उसी श्रद्धा से बालाजी, विश्वनाथ के मंदिरों में शहनाई बजाया करते थे। वे भेदभाव से ऊपर उठकर थे। वे बनावटीपन पर विश्वास नहीं रखते थे। बिस्मिल्ला खाँ भारतरत्न जैसा सर्वोच्च सम्मान पाकर भी साधारण जीवन व्यतीत करते थे। वे सामान्य और सरल जीवन जीने वाले, सबका सम्मान करने वाले,
सच्चे अर्थों में इंसान थे।
प्रश्न 7.बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तरबिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी घटनाएँ और वे व्यक्ति जिनसे प्रेरित होकर उनकी संगीत साधना समृद्ध हुई वे इस प्रकार हैं-
बिस्मिल्ला खाँ के मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श-बिस्मिल्ला खाँ के दोनों मामा शहनाई वादक थे। उनसे ही उन्हें शहनाई बजाने की प्रेरणा मिली और शहनाई बजाने में रुचि लेने लगे।
बिस्मिल्ला खाँ के नाना-बिस्मिल्ला खाँ के नाना भी शहनाई बजाते थे। जब वे रियाज़ करते थे तो वे छिपकर सुनते थे। उनके चले जाने पर उनकी शहनाई हूँढ़ते थे और बजाकर रख देते थे।
रसूलन व बतूलन बाई-रियाज़ के लिए वे मंदिर उस रास्ते से जाते थे जिस रास्ते पर रसूलन और बतूलनबाई का घर पड़ता था। उनके द्वारा गाई गई ठुमरी, टप्पे, दादरा आदि को सुनकर उनके मन में संगीत के प्रति रुचि उत्पन्न हुई।
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