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फ्रांस की क्रांति के कारण परिणाम French Revolution in Hindi
France Ki Kranti ke Parinam- फ्रांस की जनसाधारण वर्ग की दशा बहुत ही सोचनीय थी और उसका जीवन अनेक कष्टों से भरा हुआ था| इसके परिणाम स्वरुप सन 1789 ईसवी में ...
विश्व इतिहास फ्रांस की क्रांति – 1789 French Revolution
French Revolution in Hindi. France ki Kranti kya hai? Iske kya parinaam hue? Ye kab hua? Iska hero kaun tha? World History.फ्रांस की क्रांति के क्या कारण थे
फ्रांस की क्रांति कारण प्रभाव परिणाम | French Revolution In Hindi
hihindi.com › फ्रांस-कीफ्रांस की क्रांति कारण प्रभाव परिणाम | French Revolution In Hindi hihindi.com › फ्रांस-की Cachedफ्रांस की क्रांति के कारणफ्रांस की क्रांति का स्वरूपफ्रांस की क्रांति के परिणामफ्रांस की राज्यक्रांति से जुड़े रोचक तथ्य1848 की फ्रांसीसी क्रांति के कारण-.राजनितिक परिस्थितियां– फ्रांस का राजा लुईस 16वां निरंकुश स्वेच्छाचारी व दैवीय अधिकारों से युक्त था. राजा की इच्छा ही कानून था. वह खर्चीला तथा विवेकशून्य शासक था. कई वर्षों से एस्टेट जनरल की बैठक न...सामाजिक विषमता– फ्रांस के एक वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त थे दूसरा वर्ग अधिकारविहीन था. अधिकारविहीन वर्ग जिसमे मध्यम और सामान्य वर्ग के लोग सम्मिलित थे. उनका राजा सामंत और पादरियों द्वारा शोषण किय...आर्थिक कारण- इस समय फ्रांस की स्थति आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक खराब हो गई थी. इसका मुख्य कारण युद्धों का भारी खर्च दूषित कर पद्दति तथा राजशाही अपव्यय था. उच्च वर्ग को कर मुक्त रखा गया था. मगर जनता प...मजहबी असंतोष– फ्रांस में इस समय एक लाख पच्चीस हजार मजहबी पादरी थे. कुछ पादरियों का जीवन ऐसा ऐश्वर्यशाली था जबकि कुछ के पास दो वक्त के भोजन की भी व्यवस्था नही थी. निर्धन व भूखी जनता को चर्च की सम्पत...See full list on hihindi.com बेस्तील का पतन राजा की निरंकुशता के विरुद्ध जनता द्वारा किये गये विरोध की सफलता का सूचक था. 4 अगस्त 1789 को राष्ट्रीय सभा ने सामंतों के अधिकार समाप्त कर दिए. 17 अगस्त 1789 को नेशनल असेम्बली द्वारा समानता स्वतंत्रता व भातृत्व के साथ मौलिक अधिकारों की घोषणा की गई. 5 अक्टूबर 1789 को हमारों महिलाएं हमे रोटी दो के नारे के साथ वर्साय के शाही महल में घुस... See full list on hihindi.com यूरोप ही नही सम्पूर्ण विश्व में फ्रांस की इस राज्य क्रांति का एक विशेष स्थान है. हेजन के अनुसार ‘फ्रांस की क्रांति’ने राज्य की एक नई धारणा को जन्म दिया. इस क्रांति ने विश्व की अधिकाँश महत्वपूर्ण घटनाओं को प्रभावित किया. इस फ्रांसीसी रिवेल्युशन के परिणाम निम्नलिखित थे. 1. इस क्रांति से आर्थिक शोषण की पोषक बनती व्यवस्था का अंत हुआ. अन्य देशों में भी ... See full list on hihindi.com फ्रांसीसी क्रांति फ्रांस और यूरोप के इतिहास की सबसे मुख्य घटनाओं में से एक मानी जाती है क्योंकि इस क्रांति के पश्चात पूरा यूरोप परिवर्तन के रास्ते पर अग्रसर हो गया था। फ्रांस की राज्यक्रांति से जुडे कुछ बेहद। रोचक तथ्यों को नीचे व्यक्त किया गया हैं – 1. सन् 1774 में लुई 16 फ्रांस के नए शासक बने थे। 2. 1789 ई. में लुई 16 के शासनकाल से फ्रांसीसी क्रा... See full list on hihindi.com सन् 1848 में हुए फ्रांसीसी क्रांति के पीछे एक नहीं बल्कि कई सारे कारण हैं। 1848 के फ्रांसीसी क्रांति के कारणों पर हमने नीचे प्रकाश डाला है – 1. समाजवादी विचारधारा का उदय 2. लुई फिलिप की विदेशी नीति 3. गीजो मंत्रिमंडल द्वारा अपनाई गई प्रतिक्रियावादी नीति 4. उच्च बुर्ज़ुआ वर्ग की प्रधानता 5. फ्रांसीसी क्रांति का यूरोप पर प्रभाव फ्रांसीसी तथा यूरोपियन... See full list on hihindi.com
फ्रांस की राज्यक्रांति | France ki Kranti Notes in Hindi
क्रांति के कारण 1. राजनीतिक कारण फ्रांस के बुर्बो राजवंश द्वारा अपने अधीनस्थों को राजमुद्रा युक्त अधिकार पत्र दिया जाता था यह ‘लेटर डी केचेत‘ कहलाता ...
फ्रांसीसी क्रांति इतिहास नोट्स France Revolution History in Hindi
इस लेख में आप फ्रांसीसी क्रांति का इतिहास नोट्स France Revolution History in Hindi पढ़ सकते हैं। यह मुख्य रूप से 9th class के course में आता है। इसमें आप इसके कारण प्रभाव और परिणाम के ...
Francisi Kranti Ke Samay France Ki Sansad Kis Naam Se ...
Francisi Kranti Ke Samay France Ki Sansad Kis Naam Se Prasiddh Thi? फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की संसद किस नाम से प्रसिद्ध थी? #1 Answers Listen to Expert Answers on Vokal - India’s Largest Question & Answers Platform in 11 Indian Languages.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस का राजा कौन था?
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस के राजा. 1789 के एस्टेट्स जनरल ने फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत को चिन्हित किया यह गहरा राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का ...
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स्रोत : news-nl.makkah-news.com
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की संसद किस नाम से प्रसिद्ध थी? » Francisi Kranti Ke Samay France Ki Sansad Kis Naam Se Prasiddh Thi
Francisi Kranti Ke Samay France Ki Sansad Kis Naam Se Prasiddh Thi? ✓ फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की संसद किस नाम से प्रसिद्ध थी? #1 Answers, ✓ Listen to Expert Answers on Vokal - India’s Largest Question & Answers Platform in 11 Indian Languages.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की संसद किस नाम से प्रसिद्ध थी?...
फ्रांसज्ञान गंगासंसद
Aman Sharma
A Scientific Thinker
0:18
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फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की संसद पालमा नाम से प्रसिद्ध थी इसको राजा की निरंकुशता एवं शुभेच्छा सरिता पर अंकुश लगाने के लिए इस संस्था का गठन किया गया था
Romanized Version 7 335 1 जवाब
ऐसे और सवाल
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की संसद किस नाम से प्रसिद्ध थी?...
लोकतंत्र राजतंत्र था खुद की कई कारणों की राज्यक्रांति हुई राजा रानी कोऔर पढ़ें
Ashok Bajpai
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फ्रांसीसी क्रांति कब हुई थी ,उस समय फ्रांस का राजा कौन था?...
आंधी के फ्रेंच रिवॉल्यूशन जो है 5 मई 1779 से 9 नवंबर 1799 तक रहा...और पढ़ें
munmun Volunteer
फ्रांसीसी क्रांति के समय जर्मन की संसद का क्या नाम था?...
जाल वीरान फ्रांसीसी क्रांतिकारी के समय जर्मनी की संसद थेऔर पढ़ें
Harpreeth
फ्रांस की संसद के सदनों के क्या नाम हैं?...
फ्रांस की संसद के सदनों के नाम क्या है चित्र फ्रांस की संसद के सदनोंऔर पढ़ें
RIYAZUDDIN ANSARI Teacher
फ्रांस की संसद का नाम बताइये?...
फ्रांस की संसद का नाम बताएं दिखे फ्रांस की संसद के स्कूलों के नाम जोऔर पढ़ें
RAZIBUL ISLAM KHAN
Teacher- 10 Years experience in colleges as a assistant professor
फ्रांस की प्राचीन संसद का क्या नाम था?...
आपका सवाल है फ्रांस की प्राचीन संसद का नाम क्या था तो दिख इस सवालऔर पढ़ें
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फ्रांस में फ्रांस की संसद को क्या कहा जाता है?...
फ्रांस की संसद को क्या कहा जाता है कहां की संसद को प्रिंस पार्लियामेंट याऔर पढ़ें
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फ्रांस की संसद को किस नाम से जाना जाता है?...
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Aditya
फ्रांस में संसद को क्या कहते हैं?...
फ्रांस की संसद जो है यह नेशनल असेंबली को कहां रहता है...और पढ़ें
Roshan Prasad Jaiswal
Junior Volunteer
फ़्रांस का इतिहास
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९८५ से लेकर १९४७ तक की अवधि में फ्रांस की सीमाओं का विस्तार तथा संकुचन
फ्रांस का प्राचीन नाम 'गॉल' था। यहाँ अनेक जंगली जनजातियों के लोग, मुख्य रूप से, केल्टिक लोग, निवास करते थे। सन् 57-51 ई.पू. में जूलियस सीजर ने उन्हें परास्त कर रोमन साम्राज्य में मिला लिया। वहाँ शीघ्र ही रोमन सभ्यता का प्रसार हो गया। प्रथम शताब्दी के बाद कुछ ही वर्षों में ईसाई धर्म का प्रचार तेजी से आरंभ हो गया और केल्टिक बोलियों का स्थान लातीनी भाषा ने ले लिया। पाँचवीं शती में जर्मन जातियों ने उसपर अक्रमण किया। उत्तर में फ्रैंक लोग बस गए। इन्हीं का एक नेता क्लोविस था जिसने सन् 486 में अन्य लोगों को हरा कर अपना राज्य स्थापित किया और 496 ई. में ईसाई धर्म में अभिषिक्त हो गया। उसके उत्तराधिकारियों के समय देश में पुन: अराजकता फैल गई। तब सन् 732 में चार्ल्स मार्टेल ने विद्रोहियों का दमन कर शांति और एकता स्थापित की। उसके उत्तराधिकारी पेपिन की मृत्यु (768 ई. में) होने के बाद पेपिन का पुत्र शार्लमान गद्दी पर बैठा। उसने आसपास के क्षेत्रों को जीतकर राज्य का विस्तार बहुत बढ़ा दिया, यहाँ तक कि सन् 800 ई. में पोप ने उसे पश्चिमी राज्यों का सम्राट् घोषित किया।
शार्लमान के उत्तराधिकारी अयोग्य साबित हुए जिससे साम्राज्य विखंडित होने लगा और उत्तर से नार्समॅन लोगों के हमले शुरू हो गए। ये लोग नार्मंडी में बस गए। सन् 987 में शासनसूत्र ह्यूकैपेट के हाथ में आया किंतु कुछ समय तक उसका राज्य पेरिस नगर के आस पास के क्षेत्र तक ही सीमित रहा। इधर उधर कई सामंतों का बोलबाला था जो यथेष्ट शक्तिशाली थे। 13वीं शताब्दी तक राजा की शक्ति में क्रमश: वृद्धि होती गई किंतु इस बीच शतवर्षीय युद्ध (1337-1453) के कारण इसमें समय समय पर बाधाएँ भी उपस्थित होती रहीं। जोन ऑफ आर्क नामक देशभक्त महिला ने राजा और उसके सैनिकों में जो उत्साह और स्फूर्ति भर दी थी, उससे सातवें चार्ल्स की मृत्यु (1461) तक फ्रांस की भूमि पर से अंग्रेजी आधिपत्य समाप्त हो गया। फिर लूई 11वें के शासनकाल में (1461-83 ई.) सामंतों का भी दमन कर दिया गया और वर्गंडी फ्रांस में मिला लिया गया।
आठवें चार्ल्स (1483-89) तथा 12वें लूई (1489-1515) के शासनकाल में इटली के विरुद्ध कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं जिनका सिलसिला आगे भी जारी रहा। परिणामस्वरूप पश्चिमी यूरोप में शक्तिवृद्धि के लिए स्पेन के साथ कशमकश आरंभ हो गई। जब फ्रांस में प्रोटेस्टैट धर्म का जोर बढ़ने लगा कई फ्रेंच सरदारों ने राजनीतिक उद्देश्य से उसे अपना लिया जिससे गृहयुद्ध की आग भड़क उठी। फ्रेंच राजतंत्र स्वदेश में तो सामान्यत: प्रोटेस्टैट विचारों का दमन करना चाहता था किंतु बाहर स्पेन की ताकत न बढ़ने देने के उद्देश्य से प्रोटेस्टैटों का समर्थन करता था। नवें चार्ल्स (1560-74) तथा तृतीय हेनरी (1574-89) के राज्यकाल में गृहयुद्धों के कारण फ्रांस को बड़ी क्षति पहुँची। पेरिस, कैथालिक मत का गढ़ बना रहा। सन् 1572 में हजारों प्रोटेस्टैट सेंट बार्थोलोम्यू में मार डाले गए। निदान चतुर्थ हेनरी (1589-1610) ने देश में शांति स्थापित की, धार्मिक सहिष्णुता की घोषणा की और राजा की स्थिति सुदृढ़ बना दी। एक कैथालिक द्वारा उसकी हत्या हो जाने पर उसका पुत्र 13वाँ लूई गद्दी पर बैठा। उसके मंत्री रीशल्यू ने राजा की और राज्य की शक्ति बढ़ाने का काम जारी रखा। तीसवर्षीय युद्ध में शरीक होकर उसने फ्रांस के लिए अलसेस का क्षेत्र प्राप्त किया और उसे यूरोप का प्रमुख राज्य बना दिया। 13वें लूई की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 14वाँ लूई (1638-1715) पाँच वर्ष की अवस्था में फ्रांस का शासक बना (1643)। उसका शासन वस्तुत: बालिग होने पर 1661 ई. में प्रारंभ हुआ। शुरू में उसने ऊपरी टीमटाम में बहुत रुपया फूँक दिया, जब उसने वर्साय के प्रसिद्ध राजप्रासाद का निर्माण कराया। वृद्धावस्था में उसका स्वेच्छाचार बढ़ता गया। उसने विदेशों से युद्ध छेड़ते रहने की नीति अपनाई जिससे देश की सैनिक शक्ति और आर्थिक स्थिति को क्षति पहुँची तथा विदेशी उपनिवेश भी उससे छिन गए। उसके उत्तराधिकारियों 15वें लूई (1715-74) तथा 16वें लूई (1774-93) के समय में भी राजकोष का अपव्यय बढ़ता गया। जनता में असंतोष फैलने लगा जिसे वालटेयर तथा रूसो की रचनाओं से प्रोत्साहन मिला।
जुलाई १७८९ में बस्तील का विध्वंस फ्रांस की क्रांति की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
जब राष्ट्रीय ऋण बहुत बढ़ गया तब लूई 16वें को विवश होकर स्टेट्स-जनरल की बैठक बुलानी पड़ी। सामान्य जनता के प्रतिनिधियों ने अपनी सभा अलग बुलाई और उसे ही राष्ट्रसभा घोषित किया। यहीं से फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत हुई। सितंबर, 1792 में प्रथम फ्रेंच गणतंत्र उद्घोषित हुआ और 21 जनवरी 1793, को लूई 16वें को फाँसी दे दी गई। बाहरी राज्यों के हस्तक्षेप के कारण फ्रांस को युद्धसंलग्न होना पड़ा। अंत में सत्ता नैपोलियन के हाथ में आई, जिसने कुछ समय बाद 1804 में अपने को फ्रांस का सम्राट् घोषित किया। वाटरलू की लड़ाई (1815 ई.) के बाद शासन फिर बूरबों राजवंश के हाथ में आ गया। दसवें चार्ल्स ने जब 1830 ई. में नियंत्रित राजतंत्र के स्थान में निरंकुश शासन स्थापित करने की चेष्टा की, तो तीन दिन की क्रांति के बाद उसे हटाकर लूई फिलिप के हाथ में शासन दे दिया गया। सन् 1848 में वह भी सिंहासनच्युत कर दिया गया और फ्रांस में द्वितीय गणतंत्र की स्थापना हुई। यह गणतंत्र अल्पस्थायी ही हुआ। उसके अध्यक्ष लूई नैपोलियन ने 1852 में राज्यविप्लव द्वारा अपने आपको तृतीय नैपोलियन के रूप में सम्राट् घोषित करने में सफलता प्राप्त कर ली। उसकी आक्रामक नीति के परिणामस्वरूप प्रशा से युद्ध छिड़ गया (1870-71), जिसमें फ्रांस को गहरी शिकस्त उठानी पड़ी। तृतीय नैपोलियन का पतन हो गया और तीसरे गणतंत्र की स्थापना की बुनियाद पड़ी।
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