kawan sukaj kathin jag mahi chaupai in hindi
Mohammed
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कवन सो काज कठिन जग माहीं
कवन सो काज कठिन जग माहीं
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कवन सो काज कठिन जग माहींचौपाई
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥3॥
भावार्थ
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥3॥
कवन सो काज कठिन जग माहींचौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।पन्ने की प्रगति अवस्थाआधार प्रारम्भिक माध्यमिक पूर्णता शोध
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कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं
कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं | दमोह बुधवार को रामभक्त हनुमानजी का प्राकट्योत्सव है। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के चलते वैसे तो... | mp news kavan so kaj ko hard jug maaaye which is not there so you can get
कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं
3 वर्ष पहले
दमोह } बुधवार को रामभक्त हनुमानजी का प्राकट्योत्सव है। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के चलते वैसे तो इस बार शोभायात्रा नहीं निकल रही है, लेकिन दमाेह नगर और आसपास के क्षेत्र से हर साल शोभायात्रा निकालने वाले पिछले कई दिनों से इसकी तैयारियां कर रहे थे।हमने इन्हीं आयोजकों में से कुछ प्रमुख लोगों से बात की उनसे पूरी तैयारियों के बारे में जानकारी ली। इसे रंग के साथी ग्रुप के चित्रकारों को बताया। इसके बाद चित्रकार असरार अहमद, अंशिता बजाज वर्मा, शालू सोनी, मोनिका जैन, सेजल जैन एवं उर्फी आलिया ने इस शोभायात्रा के स्वरूप को कैनवास पर उकेरा। तो आइए शामिल होते हैं भगवान हनुमानजी के प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में निकाली जा रही इस शोभायात्रा में....तुलसीदास ने बताया है- हनुमान तो बीमारियों का नाश करते हैंसिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु।।
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव।।
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट।
गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट।।
अर्थ- जिनके शरीर का रंग उदयकाल के सूर्य के समान है, जो समुद्र लांघघकर श्रीजानकीजी के शोक को हरने वाले, आजानु-बाहु, डरावनी सूरत वाले और मानो काल के भी काल हैं। लंका-रुपी गम्भीर वन को, जो जलाने योग्य नहीं था, उसे जिन्होंने निःशंक जलाया और जो टेढ़ी भौंहो वाले तथा बलवान राक्षसों के मान और गर्व का नाश करने वाले हैं। तुलसीदास जी कहते हैं – श्रीपवनकुमार सेवा करने पर बड़ी सुगमता से प्राप्त होने वाले, अपने सेवकों की भलाई करने के लिये सदा समीप रहने वाले तथा गुण गाने, प्रणाम करने एवं स्मरण और नाम जपने से सब भयानक संकटों, बीमारियों को नाश करने वाले हैं।।कोरोना से भयभीत ना हों, सतर्क रहकर हनुमानजी का स्मरण करें{अगर किसी को बार बार डर लगता हो या फिर किसी प्रकार का भय हो तो उन्हें हनुमान चालीसा की इन चौपाईयों का जप निरंतर करना चाहिए।
भूत-पिशाच निकट नहीं आवे।महावीर जब नाम सुनावे ।।
{इस चौपाइ का निरंतर जप करने से सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा।
{यदि कोई बीमारियों से घिरा रहता है, अनेक इलाज कराने के बाद भी वह सुख नही पा रहा, तो उसे इस चौपाई का जप करें।
अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता । असबर बर दीन जानकी माता ।।
{यह चौपाई व्यक्ति को समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। यदि किसी को भी जीवन में शक्तियों की प्राप्ति करनी हो, ताकि वह कठिन समय में खुद को कमजोर ना पाए तो सुबह के समय आधा घंटा इन पंक्तियों का जाप फायदा देगा ।
विद्यावान गुनी अति चातुर ।
रामकाज करिबे को आतुर ।।
{विद्या और गुण चाहिए तो इनके जप से हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।
भीम रूप धरि असुर संहारे ।
रामचंद्रजी के काज संवारे ।।
{जीवन में ऐसा कई बार होता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद कार्य में विघ्न प्रकट होते हैं । इसके जप से समाधान मिलेगा ।
और सुनिए2
खुद हनुमानजी क्या कहते हैंसागर, बुधवार, 08 अप्रैल, 2020
श्री हनुमान जयंती आजप्राकट्योत्सव की शोभायात्रा में विशालकाय प्रतिमा से प्रार्थनाकह हनुमंत बिपति प्रभु सोई।
जब तव सुमिरन भजन न होई॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की।
रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥
अर्थ- हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु! विपत्ति तो वही (तभी) है जब आपका भजन-स्मरण न हो। हे प्रभो! राक्षसों की बात ही कितनी है? आप शत्रु को जीतकर जानकीजी को ले आएंगे।प्रनवउ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।
अर्थ- तुलसीदासजी कहते हैं कि मैं पवनकुमार श्री हनुमानजी को प्रणाम करता हूं, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में -बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं।य जय बजरंगबली, पवनसुत हनुमान की जय, के उद्घोष हो रहे हैं। राम भक्त हनुमान तुम्हारी जय हो... जैसे भजन भी गाए जा रहे हैं तो कुछ लोग कह रहे हैं कवन सो काज कठिन जग माहींजो नहीं हुई तात तुम पाहीं...। हर कोई झूम रहा है तो हर कोई प्रभु भक्ति में खोया हुआ है। बुधवार को कुछ ऐसा ही नजारा शहर की सड़कों पर दिखाई दे रहा है। पूरा शहर शतरंगी ध्वज पताकाओं से सजाया गया है। शहर के विभिन्न हनुमान मंदिरों से एक संयुक्त शोभायात्रा निकली इस शोभायात्रा में इस बार हनुमानजी की विशालकाय प्रतिमा है। जिसके माध्यम से यह संदेश दिया जा रहा है की हनुमानजी से बढ़कर इस जगत में कोई नहीं है। वे सारी विपत्तियों, महामारी का नाश करने वाले हैं। संसार में ऐसा कोई काम नहीं है जो वे न कर सकें। कुछ लोग हाथों में जयश्री राम के नारे लिखे हुए बोर्ड भी लिए हुए हैं। रास्ते में जहां जहां से शोभायात्रा निकलती है लोग भगवान के दर्शनों के लिए आते हैं और हनुमानजी की आराधना और आरती करते हैं। आयोजकों द्वारा भक्तों को प्रसाद बांटा जा रहा है तो विभिन्न सामाजिक संगठनों रास्ते में जगह-जगह शोभायात्रा में चल रहे लोगों का स्वागत कर रहे हैं। उन्हें फल शीतल पेय आदि पिला रहे हैं। हर कोई भगवान से यही प्रार्थना कर रहा है कि जैसे संकट के समय में आपने भगवान श्रीराम के काज संवारे वैसे ही हम सबको भी इस संकट के दौर से जल्दी से बाहर निकालिए।
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'कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं।' गोस्वामी तुलसीदास जी इसमें क्या प्रेरणा देना चाहते हैं?
जवाब (6 में से 1): कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥ राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥ सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥ जामवंत मैं पूँछउँ तोही। ...
"कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं।" गोस्वामी तुलसीदास जी इसमें क्या प्रेरणा देना चाहते हैं?
छांटें
Chandra Prakash Tiwari
लेखक ने 3.9 हज़ार जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 3.6 क॰ बार देखा गया है2वर्ष
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा
सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही।।
यह चौपाई किष्किंधाकाण्ड के उत्तरार्ध में है जहां वानर सेना समुद्र को पार करके सीता का पता लगाने पर विचार विमर्श कर रही है।
जामवंत का हनुमान जी से कहना है कि जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके।
यह चौपाई हमारे लिए भी जोश भरने वाला है, कुछ भी असंभव नहीं है , मनुष्य के अंदर असीम संभावना
संबंधित सवाल
'सकल पदारथ एहि जग माहीं। करमहीन नर पावत नाहीं।' गोस्वामी तुलसीदास जी के इस दोहे का भावार्थ क्या है?
तुलसीदास जी नारियों को किस रूप में देखते हैं?
क्या तुलसीदास जी ने हनुमान को देखा था ?
तुलसीदास जी को रामचरितमानस लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
गोस्वामी तुलसीदास जी को महाकवि किसने बनाया था?
तीसरा पहलू Vinay Ashta
ने जवाब दिया हैलेखक ने 1.7 हज़ार जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 38.5 लाख बार देखा गया है13 दिस॰ 2020
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"कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं।" गोस्वामी तुलसीदास जी इसमें क्या प्रेरणा देना चाहते हैं?
सबसे पहले जवाब दिया गया: कौन सा काज कठिन जग माही, जो नहीं होय तात तुम नाही। गोस्वामी तुलसीदास जी इसमें क्या प्रेरणा देना चाहते हैं।?
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा।
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा
भावार्थ
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी
के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी
पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥3॥
मेरे ख्याल से यह वचन मूलतः जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी भूली हुई शक्तियां याद कराने के लिए कहीं थी
तीसरा पहलू अैाम प्रकाश त्यागी
ने जवाब दिया हैलेखक ने 2.6 हज़ार जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 65.2 लाख बार देखा गया है13 दिस॰ 2020
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"कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं।" गोस्वामी तुलसीदास जी इसमें क्या प्रेरणा देना चाहते हैं?
" ऐसा कौन सा काम है, जिसे तुम कर नही सकते : यदि तुम उस काम को करने की ठान लो !!! "
इसका सीधा सा मतलब यह है कि अगर कोई काम ऐसा है जिसे मैं (कह रहा हूँ) नही कर सकता तो सिर्फ इसलिए कि उस काम को करने की प्रबल चाहत मेरे मन में नही है।
WHERE THERE IS A WILL, THERE IS A WAY!
जहाँ चाह है, वहाँ राह है !!!!!
गोस्वामी तुलसीदास इस बात पर जोर दे रहे हैं :
जो भी काम आप करना चाहते हैं : उसका अच्छा, बुरा; मुनाफा, घाटा पहले ठीक से लगा लो। जब यह ठान लिया कि अमुक काम करना है : फिर उस काम को सिद्ध करने में अपना सर्वस्व झोंक दो।
LAXMAN KUMAR MALVIYA
सिविल लायर9 सित॰
इस पर बागेश्वर महाराज जी ने बहुत ही उम्दा बात कही है आप यूट्यूब पर अवश्य देखिए
संबंधित सवाल
क्या आपने किसी महान शख्सियत से ज़िंदगी में कुछ प्रेरणा ली है ? यदि हाँ तो क्या आप नाम बता सकते हैं ?
क्या आप गोस्वामी तुलसीदास जी के कुछ शिक्षाप्रद दोहे बता सकते हैं?
गोस्वामी तुलसीदास के बारे में कुछ अद्भुत तथ्य बताइए ?
तुलसीदास जी द्वारा लिखित पंक्तियों "नहीं दरिद्र सम दुःख जग माही। संत मिलन सम सुख जग नाही।।" का क्या अर्थ है?
तुलसीदास जी के गुरु कौन थे?
पौराणिक कथाएं 1
रीना सिंह "भारद्वाज"
ने जवाब दिया हैलेखक ने 1.7 हज़ार जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 1.5 क॰ बार देखा गया है28 फ़र॰ 2021
धन्यवाद अनुरोध के लिए। हनुमान जी बचपन में बहुत शरारती थे, तपस्वियों के यज्ञ में बाधा उत्पन्न करते रहते थे। एक बार उनकी हरकतों से परेशान होकर भृगुवंश के ऋषियों ने हनुमान को श्राप दिया कि वह अपनी शक्ति को भूल जाएंगे, उन्हें अपनी शक्तियां तभी याद आएंगी जब कोई उनको याद दिलाएगा।
"कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं।"
ये पंक्तियां रामचरितमानस की हैं। जब माता सीता की खोज करते हुए जामवंत, अंगद और हनुमानजी दक्षिण के समुद्र तट पर पहुंचे, तो कौन सीता मैया का पता लगाने लंका जाए इसी पर विचार कर रहे थे।
तभी जामवंत जी ने स्वयं को बूढ़ा होने के कारण असमर्थ बताया। अंगद को अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर
Rajkumarahuja RajkumarAhuja
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कठिन परिश्रम करता है ऊस सब मिलता हैं कठिन नही तो कुछ नही
निशीथ रंजन
Www.hindisahityadarpan.in में कार्यरत3वर्ष
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‘रश्मिरथी’ यह भी संदेश देता है कि अपने कर्मों से मनुष्य मृत्यु-पूर्व जन्म में ही एक और जन्म ले लेता है। अंततः मूल्यांकन योग्य मनुष्य का मूल्यांकन उसके वंश से नहीं, उसके आचरण और कर्म से ही किया जाना न्यायसंगत है।
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पलक कढ़ी
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