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    sansadiya pranali mein karyapalika kiske prati uttardayi hoti hai

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    संसदीय प्रणाली

    संसदीय प्रणाली

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    संसदीय प्रणाली (Saṁsadīya Praṇālī ) लोकतान्त्रिक शासन की वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका और विधायिकता मे घनिष्ट सम्बंध होता है क्योकि वास्तविक कार्यपालिका का निर्माण विधायिका से होता है । संसदात्मक शासन प्रणाली विलय के सिद्धांत पर कार्य करती है क्योकि जो व्यक्ति विधायिका का सदस्य होने के कारण नियम बनाता है वही व्यक्ति कार्यपालिका का सदस्य बन कर नियमो को किर्यांवित करता है

    संसदात्मक शासन प्रणाली विधायिकता के प्रति उत्तरदायी होती है। इस प्रणाली में राज्य का मुखिया तथा सरकार का मुखिया अलग-अलग व्यक्ति होते हैं। कार्यपालिका ही प्रमुख शासक होता है | भारत में संसदीय शासन प्रणाली है। इसके विपरीत अध्यक्षीय प्रणाली (presidential system) में प्रायः राज्य का अध्यक्ष सरकार (कार्यपालिका) का भी अध्यक्ष होता है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि अध्यक्षीय प्रणाली में कार्यपालिका अपनी लोकतान्त्रिक वैधता विधायिका से नहीं प्राप्त करती। इस प्रणाली में राष्ट्रपति शासक होता है|

    संसदात्मक शासन प्रणाली को मंत्री मंडल शासन प्रणाली या उत्तरदायी शासन प्रणाली भी कहते है।

    शासन प्रणालियाँ

    लाल : अध्यक्षीय प्रणाली

    नारंगी : संसदीय प्रणाली

    हरा : संसदीय गणतंत्र जहाँ अध्यक्ष का चुनाव संसद करती है।

    इन्हें भी देखें[संपादित करें]

    संसदीय गणराज्य अमेरिकी कांग्रेस

    पैलेस ऑफ़ वेस्टमिन्स्टर

    लोकतंत्र का इतिहास अध्यक्षीय प्रणाली

    वेस्टमिंस्टर प्रणाली

    गौरवशाली क्रांति

    राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमि

    राष्ट्रप्रमुख शासनप्रमुख

    अर्ध-अध्यक्षीय प्रणाली

    सन्दर्भ[संपादित करें]

    सन्दर्भ[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

    विकिसूक्ति पर से सम्बन्धित उद्धरण हैं।

    विकिमीडिया कॉमन्स पर से सम्बन्धित मीडिया है।

    The Great Debate: Parliament versus Congress

    श्रेणियाँ: राजनीतिशासन प्रणालीराजनीति विज्ञानसंसदीय प्रणाली

    स्रोत : hi.wikipedia.org

    संसदीय बनाम अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली

    इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में संसदीय बनाम अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

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    संसदीय बनाम अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली

    25 Jul 2020 17 min read टैग्स: सामान्य अध्ययन-II संसद भारतीय संविधान

    इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में संसदीय बनाम अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

    संदर्भ

    भारत का संविधान न तो ब्रिटेन की संसद से पारित हुआ और न ही यह किसी धर्म संहिता पर आधारित है। भारत के लोगों के संकल्प की प्रतिनिधि संस्था ‘संप्रभु संविधान सभा’ ने संविधान का निर्माण किया है, जिसकी प्रस्तावना ने हमारी आगे की दिशा तय की। संविधान सभा में काफी सोच-विचार और बहस-मुबाहिसे के बाद शासन की संसदीय व्यवस्था चुनी गई। केंद्र व राज्य दोनों ही स्तर पर शासन की संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया। संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 के अंतर्गत केंद्र में तथा अनुच्छेद 163 और 164 के अंतर्गत राज्यों में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था की गई है।

    भारत में शासन की संसदीय प्रणाली का चयन किया गया क्योंकि यह भारतीय संदर्भ में अधिक मुफीद और कारगर थी। इसका चयन करते समय हमारे संविधान निर्माताओं ने स्‍थायित्व की जगह जवाबदेही को महत्त्व दिया, परंतु वर्तमान में राजनीतिक दलों का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना रह गया है। विधायी सदनों का कामकाज काफी लंबे समय से घटा है। बहस की गुणवत्ता लगातार घटी है। राजस्थान विधानसभा इस तथ्य का ज्वलंत उदाहरण है। इन घटनाओं से कुछ विशेषज्ञों ने भारत में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाने का सुझाव दिया है।

    इस आलेख में संसदीय शासन व्यवस्था तथा अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा।

    संसदीय शासन व्यवस्था से तात्पर्य 

    संसदीय प्रणाली (parliamentary system) लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका अपनी लोकतांत्रिक वैधता विधायिका के माध्यम से प्राप्त करती है और विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है।

    इस प्रकार संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका एक-दूसरे से परस्पर संबंधित होते हैं। इस प्रणाली में राज्य का मुखिया (राष्ट्रपति) तथा सरकार का मुखिया (प्रधानमंत्री) अलग-अलग व्यक्ति होते हैं।

    भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।

    संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री देश की शासन व्यवस्था का सर्वोच्च प्रधान होता है, हालाँकि संविधान के अनुसार राष्ट्र का सर्वोच्च प्रधान राष्ट्रपति होता है लेकिन देश की शासन व्यवस्था की बागडोर प्रधानमंत्री के हाथों में ही होती है।

    सरकार के गठन की प्रक्रिया

    भारतीय संविधान में संसदीय शासन व्यवस्था के अंतर्गत मंत्रिमंडल के गठन से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।

    अनुच्छेद 74: अनुच्छेद 74 के तहत राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद का गठन किया जाता है, जिसके प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं। उनकी सहायता और सुझाव के आधार पर राष्ट्रपति मंत्रिमंडल पर सहमति देते हैं।

    अनुच्छेद 75: प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है; वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(i) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए देश का प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं।

    संसदीय प्रणाली की विशेषताएँ

    बहुमत प्राप्त दल का शासन: आम (लोकसभा) चुनाव में सर्वाधिक सीटों पर जीत दर्ज करने वाला राजनीतिक दल सरकार बनाता है। भारत में राष्ट्रपति, लोकसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करते हैं। राष्ट्रपति बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के  नेता को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करते हैं और शेष मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करते हैं।लोकसभा के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व: मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। संसद का निम्न सदन अविश्वास प्रस्ताव पारित कर सरकार को बर्खास्त कर सकता है। जब तक सरकार को लोकसभा में बहुमत रहता है तभी तक सरकार को सदन में विश्वास प्राप्त रहता है।नाममात्र एवं वास्तविक कार्यपालिका: भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।केंद्रीय नेतृत्व: संसदीय शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी होते हैं। वे  मंत्रिपरिषद के प्रमुख होते हैं।

    दोहरी सदस्यता: मंत्रिपरिषद के सदस्य विधायिका व कार्यपालिका दोनों के सदस्य होते हैं।

    द्विसदनीय विधायिका: संसदीय प्रणाली वाले देशों में द्विसदनीय विधायिका की व्यवस्था को अपनाया जाता है। भारत में भी लोकसभा (निम्न सदन) तथा राज्यसभा (उच्च सदन) की व्यवस्था की गई है।

    स्वतंत्र लोक सेवाः संसदीय प्रणाली में मेधा आधारित चयन प्रक्रिया के आधार पर लोक सेवकों की स्थायी नियुक्ति की जाती है।

    गोपनीयता: संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका के सदस्यों को कार्यवाहियों, कार्यकारी बैठकों, नीति-निर्माण आदि मुद्दों पर गोपनीयता के सिद्धांत का पालन करना पड़ता है।

    संसदीय शासन व्यवस्था के दोष

    अस्थायित्व: संसदीय शासन व्यवस्था में सरकार का कार्यकाल तो 5 वर्ष निर्धारित है, परंतु वह कार्य तभी तक कर सकती है जब तक उसे लोकसभा में विश्वास प्राप्त है, अर्थात यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास खो देती है तो उसे सामूहिक रूप से त्यागपत्र देना पड़ता है।नीतिगत निरंतरता का अभाव: संसदीय शासन व्यवस्था में शासन की प्रकृति अस्थायी होती है, परिणामस्वरूप नीतियों में निरंतरता का अभाव रहता है।शक्तियों का अस्पष्ट विभाजन: कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन नहीं होता है।अकुशल व्यक्तियों द्वारा शासन: संसदीय शासन व्यवस्था में राजनीतिक कार्यपालिका के सदस्य लोकप्रियता के आधार पर चुने जाते हैं, उनके पास विशेष ज्ञान का अभाव होता है।

    स्रोत : www.drishtiias.com

    Parliamentary System in India

    The Parliamentary Forums have been constituted with the objective of equipping members with information and knowledge on specific issues of national concern

    भारत में संसदीय प्रणाली

    भारत में सरकार की एक संसदीय प्रणाली है। अनुच्छेद 74 और अनुच्छेद 75 केंद्र में संसदीय प्रणाली और अनुच्छेद 163 और 164 राज्यों में संसदीय प्रणाली के बारे में है। संसदीय प्रणाली के कई गुण हैं और राष्ट्रपति प्रणाली के मुकाबले कई लाभ भी। सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली को कार्यपालिका और विधायिका के बीच के रिश्तों के आधार पर संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली में बांटा जा सकता है। संसदीय प्रणाली में कार्यकारी विधायिका के हिस्से होते हैं जो कानून को लागू करने और उसे बनाने में सक्रिए भूमिका निभाते हैं।

    Hemant Singh Updated: Dec 30, 2015 09:52 IST

    सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली को कार्यपालिका और विधायिका के बीच के रिश्तों के आधार पर संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली में बांटा जा सकता है। संसदीय प्रणाली में कार्यकारी विधायिका के हिस्से होते हैं जो कानून को लागू करने और उसे बनाने में सक्रिए भूमिका निभाते हैं।

    संसदीय प्रणाली में, राज्य का प्रमुख एक सम्राट या राष्ट्रपति/ अध्यक्ष हो सकता है लेकिन ये दोनों ही पद नियमानुसार/ औपचारिक हैं। सरकार का प्रमुख जिसे आम तौर पर प्रधानमंत्री कहा जाता है, वही वास्तविक प्रमुख होता है। इसलिए, सभी वास्तविक कार्यकारिणी शक्तियां प्रधानमंत्री के पास होती हैं। मंत्रिमंडल में कार्यकारिणी शक्तियां होने की वजह से संसदीय सरकार को कैबिनेट सरकार भी कहते हैं। अनुच्छेद 74 और 75 केंद्र में संसदीय प्रणाली और अनुच्छेद 163 और 164 राज्य में संसदीय प्रणाली  के बारे में है।

    संसदीयप्रणालीकेतत्वऔरविशेषताएं

    नीचे संसदीय प्रणाली के तत्व और विशेषताएं बताईं गईं हैं

    नाममात्र का और वास्तविक प्रमुखः राज्य का प्रमुख औपचारिक पद पर होता है और वह नाममात्र का कार्यकारी होता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति।

    भारत में, सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है जो वास्तविक कार्यकारी है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75 राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री को नियुक्त किए जाने की बात कहता है। अनुच्छेद 74 के अनुसार मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता करने वाले प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को उनके कार्यों को करने में सहायता और परामर्श देंगे।

    कार्यकारिणी विधायिका का एक हिस्सा है– कार्यकारिणी विधायिका का हिस्सा है। भारत में, किसी व्यक्ति को कार्यकारिणी का सदस्य बनने के लिए उसे संसद का सदस्य होना चाहिए। हालांकि, संविधान यह सुविधा प्रदान करता है कि अगर कोई व्यक्ति संसद सदस्य नहीं है तो उसे अधिकतम लगातार छह माह की अवधि तक मंत्री नियुक्त किया जा सकता है, उसके बाद वह व्यक्ति मंत्री पद पर नहीं रह सकता (यदि वह छह माह के अन्दर संसद का सदस्य नहीं बनता है तो)।

    बहुमतदलनियमः लोकसभा चुनावों में अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने वाला दल सरकार बनाता है। भारत में राष्ट्रपति, लोकसभा में बहुमत दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। राष्ट्रपति इस नेता को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करते हैं और बाकी के मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करते हैं। अगर किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता, तो ऐसी स्थिति में, राष्ट्रपति दलों के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं।सामूहिकजिम्मेदारीः मंत्री परिषद संसद के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार होता है। संसद का निचला सदन अविश्वास प्रस्ताव पारित कर सरकार को बर्खास्त कर सकता है। भारत में, जब तक लोकसभा में बहुमत रहता है तभी तक सरकार रहती है। इसलिए, लोकसभा के पास सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार होता है।सत्ताकेकेंद्रमेंप्रधानमंत्रीः भारत में प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी होते हैं। वे सरकार, मंत्रिपरिषद और सत्तारूढ़ सरकार के प्रमुख होते हैं। इसलिए, सरकार के कामकाज में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है।संसदीयविपक्षः संसद में कोई भी सरकार शत– प्रतिशत बहुमत प्राप्त नहीं कर सकती। विपक्ष राजनीतिक कार्यकारी द्वारा अधिकार के मनमाने ढंग से उपयोग की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।स्वतंत्रलोकसेवाः लोक सेवक सरकार को परामर्श देते हैं औऱ उनके फैसलों को लागू करते हैं। मेधा– आधारित चयन प्रक्रिया के आधार पर लोक सेवकों की स्थायी नियुक्ति की जाती है। सरकार बदलने के बाद भी उनकी नौकरी की निरंतरता बनी रहती है। लोक सेवा कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के निष्पादन में दक्षता सुनिश्चित करता है।दोसदनोंवालीविधायिकाः भारत समेत, अधिकांश देश संसदीय प्रणाली अपनाते हैं और वहां दो सदनों वाली विधायिका है। इन सभी देशों के निचले सदन के सदस्यों का चुनाव जनता करती है। निचला सदन सरकार के कार्यकाल पूरा होने या बहुमत की कमी की वजह से सरकार न बना पाने की वजह से भंग किया जा सकता है। भारत में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर लोकसभा भंग कर सकते हैं।गोपनीयताः इस प्रणाली में कार्यकारिणी के सदस्यों को कार्यवाहियों, कार्यकारी बैठकों, नीतिनिर्माण आदि जैसे मामलों में गोपनीयता के सिद्धांत का पालन करना होगा। भारत में, अपने कार्यालय में प्रवेश से पहले मंत्री गोपनीयता की शपथ लेते हैं।संसदीयप्रणालीकेलाभ

    राष्ट्रपति प्रणाली की तुलना में संसदीय प्रणाली के निम्नलिखित लाभ हैं–

    विभिन्नप्रकारकेसमूहोंकाप्रतिनिधित्वः सरकार का संसदीय स्वरूप कानून और नीति निर्माण में विभिन्न जातीय, नस्ली, भाषाई और वैचारिक समूहों को अपने विचार साझा करने का अवसर मुहैया कराता है। भारत जैसे देश में जहां विविधता का स्तर बहुत अधिक है, वहां, समाज के विभिन्न वर्गों के लिए राजनीतिक स्थान उपलब्ध करा कर लोगों का जीवन सरल बनाता है।

    स्रोत : www.jagranjosh.com

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    Mohammed 5 month ago
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