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    shukla ji jab kashi barat mein gaye the to kis lekhak ke ghar ko dekha tha

    Mohammed

    Guys, does anyone know the answer?

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    NCERT Solutions for Class 12 Humanities Hindi Chapter 12

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    NCERT Solutions for Class 12 Humanities Hindi Chapter 12 - रामचंद्र शुक्ल

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    NCERT Solutions Class 12 Hindi रामचंद्र शुक्ल

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    Page No 77:

    Question 1:

    लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?

    ANSWER:

    लेखक ने अपने पिता जी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-

    • उनके पिता फ़ारसी भाषा के अच्छे विद्वान थे।

    • वे प्राचीन हिंदी भाषा के प्रशंसक थे।

    • वे फ़ारसी भाषा में लिखी उक्तियों के साथ हिन्दी भाषा में लिखी गई उक्तियों को मिलाने के शौकीन थे।

    • वे प्रायः रात में सारे परिवार को रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का बड़ा चित्रात्मक ढ़ंग से वर्णन करके सुनाते थे।

    • भारतेंदु के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे।

    Page No 77:

    Question 2:

    बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी?

    ANSWER:

    बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में मधुर भावना व्याप्त थी। वह राजा हरिश्चंद्र तथा कवि हरिश्चंद्र में अंतर को समझ नहीं पाते थे और दोनों को एक ही दृष्टि से देखते थे। यदि कोई उनके सम्मुख हरिश्चंद्र का नाम लेता, तो उनके सम्मुख उन दोनों से युक्त मिले-जुले भावों का उद्भव होता था। इसी कारण उनके मन में एक माधर्य भाव का संचार होता था।

    Page No 77:

    Question 3:

    उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी?

    ANSWER:

    लेखक के पिता की बदली, मिर्जापुर के बाहर नगर में हुई थी। वहाँ रहते हुए उन्हें एक दिन ज्ञात हुआ कि भारतेन्दु हरिश्चंद्र के सखा जिनका नाम उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी है और जो 'प्रेमघन' उपनाम से लिखते हैं, वे यहाँ रहते हैं। लेखक उन्हें मिलने को आतुर हो उठा और अपने मित्रों की मंडली के साथ योजना अनुसार एक-डेढ़ मिल चलकर उनके घर के नीचे जा खड़ा हुआ। इसके लिए उन्होंने ऐसे बालकों को भी खोज लिया, जो उनके घर से तथा प्रेमघनजी से भली-भांति परिचित थे। उनके घर की ऊपरी बालकनी लताओं से सुज्जित थी। लेखक ऊपर की और लगातार देखता रहा कुछ देर में उसे प्रेमघन की झलक दिखाई पड़ी। उनके बाल कंधों तक लटक रहे थे। लेखक जब तक कुछ समझ पाता वे अंदर चले गए।

    Page No 77:

    Question 4:

    लेखक का हिंदी-साहित्य के प्रति झुकाव किस प्रकार बढ़ता गया?

    ANSWER:

    लेखक के पिता फ़ारसी के ज्ञाता थे तथा हिंदी प्रेमी भी थे। उनके घर में भारतेन्दु रचित हिन्दी नाटकों का वाचन हुआ करता था। रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का भी सुंदर वाचन होता था। पिता द्वारा लेखक को बचपन से ही साहित्य से परिचय करवा दिया गया था। भारतेन्दु लिखित नाटक लेखक को आकर्षित करते थे। अतः इस आधार पर कहा जा सकता है कि पिताजी ने ही उनके अंदर हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम के बीज बोए थे। इस तरह हिंदी साहित्य की ओर झुकाव होना स्वाभाविक था। आगे चलकर पंडित केदारनाथ जी ने इसमें मील के पत्थर का कार्य किया। लेखक जिस पुस्तकालय में हिंदी की पुस्तकें पढ़ने जाया करते थे, उसी के संस्थापक केदारनाथ जी थे। वे लेखक को प्रायः पुस्तक ले जाते हुए देखते थे। बच्चे के अंदर हिंदी पुस्तकों और लेखकों के प्रति आदरभाव देखकर वह बहुत प्रभावित हुए। उन्हीं के कारण सौलह वर्ष की अवस्था में लेखक को हिंदी प्रेमियों की मंडली से परिचय हुआ। इस मंडली के सभी लोग हिंदी जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे, जिनमें काशी प्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, पंडित बदरीनाथ गौड़, पंडित उमाशंकर द्विवेदी इत्यादि थे। इन सबके रहते हुए लेखक का साहित्य के प्रति झुकाव और तेज़ी से बढ़ने लगा।

    Page No 77:

    Question 5:

    'निस्संदेह' शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का ज़िक्र किया है?

    ANSWER:

    'निस्संदेह' शब्द को लेकर लेखक ने इस प्रसंग का ज़िक्र किया है। जब लेखक का परिचय हिन्दी प्रेमी मंडली से हुआ, तो वहाँ प्रायः लिखने तथा बोलने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग किया करते थे। बातचीत करते समय निस्संदेह शब्द का अधिक प्रयोग किया जाता था। दूसरे लेखक के घर के आसपास ऐसे लोग अधिक रहा करते थे, जो मुख्तार, कचहरी के अफसर या कर्मचारी तथा वकील हुआ करते थे। ये लोग राजभाषा होने के कारण उर्दू का प्रयोग अधिक किया करते थे। ऐसे लोगों को लेखक तथा उसकी मंडली द्वारा हिंदी बोलना अजीब लगता था। इन्हीं लोगों ने लेखक तथा उनकी मित्र-मंडली का नाम 'निस्संदेह' रख दिया था।

    Page No 77:

    Question 6:

    पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

    ANSWER:

    तीन रोचक घटनाएँ चौधरी साहब से जुड़ी हुई हैं। वे इस प्रकार हैं-

    (क)  एक बार एक प्रसिद्ध कवि वामनाचार्यगिरि चौधरी साहब से मिलने आए। वे मार्ग पर चलते हुए चौधरी साहब पर आधारित कविता का निर्माण कर रहे थे। कविता के आखिर अंक पर वह अटके हुए थे तभी उन्हें ऊपरी बालकनी में चौधरी साहब खड़े दिखाई दिए। उन्हें देखते ही वह तपाक से ज़ोर से बोल पड़े "खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।"

    (ख) ऐसे ही एक दिन चौधरी साहब बहुत से लोगों के साथ बैठे हुए थे। वहाँ से एक पंडित जी गुजर रहे थे, सो वह भी इस मंडली में आ गए। चौधरी साहब ने उनका हालचाल पूछा "और क्या हाल है?"  पंडित जी बोल पड़े- "कुछ नहीं, आज मेरा एकदशी का वर्त है। अतः कुछ जल खाया है और बस यूहीं चले आ रहे हैं।" उनका इतना कहना था कि सब पूछ पड़े "जल ही खाया है या कुछ फलाहार भी पिया है।"

    (ग) चौधरी साहब के पास एक दिन उनके मित्र मिलने के लिए पहुँचे। चौधरी साहब से वह अचानक प्रश्न पूछ बैठे- " साहब में अकसर 'घनचक्कर' शब्द सुना करता हूँ आपको मालूम है इसका क्या अर्थ है?"  बस क्या था चौधरी साहब बोल पड़े "इसमें कौन सी कठिन बात है? रात के समय एक कागज़ कलम लो। उसमें सुबह से लेकर रात तक का जो-जो काम किया है, उसे लिखिए और पढ़ लीजिए।"

    स्रोत : www.meritnation.com

    श्रीलाल शुक्ल

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    "श्रीलाल शुक्ल" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR)

    श्रीलाल शुक्ल (31 दिसम्बर 1925 - 28 अक्टूबर 2011) हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वह समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात थे।

    श्रीलाल शुक्ल

    श्रीलाल शुक्ल

    जन्म 31 दिसम्बर 1925 ई॰

    अतरौली गाँव, लखनऊ उत्तर-प्रदेश, भारत

    मृत्यु 28 अक्टूबर 2011 ई॰

    व्यवसाय उपन्यासकार व व्यंग्यकार के रूप में प्रतिष्ठित, 130 से अधिक पुस्तकों का लेखन।

    भाषा अवधी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी

    राष्ट्रीयता भारतीय अवधि/काल आधुनिक काल

    विधा व्यंग्य, उपन्यास, विनिबंध, आलोचना

    उल्लेखनीय कार्यs सूनी घाटी का सूरज, आओ बैठ लें कुछ देर, अंगद का पांव, रागदरबारी, अज्ञातवास, आदमी का ज़हर, इस उम्र में, उमराव नगर में कुछ दिन, कुछ ज़मीन पर कुछ हवा में, ख़बरों की जुगाली, विश्रामपुर का संत, मकान, सीमाएँ टूटती हैं, संचयिता, जहालत के पचास साल, यह घर मेरा नहीं है

    हस्ताक्षर [[File:Signature of srilal shukla.jpg|frameless|upright=0.72|alt=]]

    साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1999 में व्यास सम्मान, 2005 में यश भारती, 2008 में पद्मभूषण, 2009 का ज्ञानपीठ सम्मान 18 अक्टूबर 2011, लोहिया सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शरद जोशी सम्मान समेत अनेक सम्मान व पुरस्कार।

    श्रीलाल शुक्ल (जन्म-31 दिसम्बर 1925 - निधन- 28 अक्टूबर 2011) को लखनऊ जनपद के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। उन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में राज्य सिविल सेवासे नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए। उनका विधिवत लेखन 1954 से शुरू होता है और इसी के साथ हिंदी गद्य का एक गौरवशाली अध्याय आकार लेने लगता है। उनका पहला प्रकाशित उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' (1957) तथा पहला प्रकाशित व्यंग 'अंगद का पाँव' (1958) है। स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्री शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।[1]

    व्यक्तित्व[संपादित करें]

    श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपनी मिसाल आप था। सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। श्रीलाल शुक्ल अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान थे। श्रीलाल शुक्ल संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे। 'कथाक्रम' समारोह समिति के वह अध्यक्ष रहे। श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, मगर उसके विलाप से लेखन को नहीं भरा। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे। न पढ़ने और लिखने के लिए लोग सैद्धांतिकी बनाते हैं। श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते। श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बड़ा सहज था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे। लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहते थे। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली राग दरबारी जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी।

    रचनाएँ[संपादित करें]

    10 उपन्यास, 4 कहानी संग्रह, 9 व्यंग्य संग्रह, 2 विनिबंध, 1 आलोचना पुस्तक आदि उनकी कीर्ति को बनाये रखेंगे। उनका पहला उपन्यास सूनी घाटी का सूरज 1957 में प्रकाशित हुआ। उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास राग दरबारी 1968 में छपा। राग दरबारी का पन्द्रह भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। राग विराग श्रीलाल शुक्ल का आखिरी उपन्यास था। उन्होंने हिंदी साहित्य को कुल मिलाकर 25 रचनाएं दीं। इनमें मकान, पहला पड़ाव, अज्ञातवास और विश्रामपुर का संत प्रमुख हैं।

    उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं -

    सूनी घाट का सूरज (1957)

    अज्ञातवास (1962) ‘राग दरबारी (1968) आदमी का ज़हर (1972)

    सीमाएँ टूटती हैं (1973)

    ‘मकान (1976) ‘पहला पड़ाव’(1987)

    ‘विश्रामपुर का संत (1998)

    बब्बरसिंह और उसके साथी (1999)

    राग विराग (2001)

    ‘यह घर मेरी नहीं (1979)

    सुरक्षा और अन्य कहानियाँ (1991)

    इस उम्र में (2003)

    दस प्रतिनिधि कहानियाँ (2003)

    उनकी प्रसिद्ध व्यंग्य रचनाएँ हैं-

    अंगद का पाँव (1958) यहाँ से वहाँ (1970)

    मेरी श्रेष्‍ठ व्यंग्य रचनाएँ (1979)

    उमरावनगर में कुछ दिन (1986)

    कुछ ज़मीन में कुछ हवा में (1990)

    आओ बैठ लें कुछ देरे (1995)

    अगली शताब्दी का शहर (1996)

    जहालत के पचास साल (2003)

    खबरों की जुगाली (2005)

    आलोचना

    अज्ञेय:कुछ रंग और कुछ राग (1999)

    विनिबंध

    भगवतीचरण वर्मा (1989)

    अमृतलाल नागर (1994)

    निबंध संग्रह:अंगद का पाँव(1958ई०), यहाँ से वहाँ(1970ई०),मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ (1979ई०),कुछ जमीन पर कुछ हवा में (1993ई०),आओ बैठ लें कुछ देर(1995 ई०),अगली शताब्दी का शहर(1996ई०),खबरों की जुगाली(2006ई०)।उपन्यास:

    सूनी घाटी का सूरज (1957)· अज्ञातवास · रागदरबारी · आदमी का ज़हर · सीमाएँ टूटती हैं

    स्रोत : hi.wikipedia.org

    नज़रिया: महात्मा गांधी को चंपारण लेकर कौन आया?

    चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी के मौके पर वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय इस सवाल पर रोशनी डाल रहे हैं.

    नज़रिया: महात्मा गांधी को चंपारण लेकर कौन आया?

    मधुकर उपाध्याय

    वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

    16 अप्रैल 2017 ऑडियो कैप्शन,

    चंपारण में गांधी का कमाल

    इतिहास को कहानी की तरह देखना उसे रोचक, पठनीय और विवादास्पद बना सकता है पर इससे न इतिहास बदलता है, न घटनाक्रम, न किरदार.

    चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी पर यह बात एक बार फिर सामने आई है, जो साक्ष्यों के अनुपस्थित के अभाव को प्रामाणिक तथ्य बनाकर पेश करती है ताकि उसका अर्थ बदले न बदले, भाव बदल जाए.

    सवाल यह है कि महात्मा गांधी को चंपारण लेकर कौन आया?

    तमाम अशुद्धियों वाले अपने लेख में इतिहासकार रामचंद्र गुहा हालांकि सीधे तौर पर इस पर टिप्पणी नहीं करते, लेख का शीर्षक सवाल उठाता है.

    एक और लेख में दावा किया गया है कि महात्मा को चंपारण लाने में प्रमुख भूमिका राजकुमार शुक्ल की नहीं बल्कि उस दौर के दूसरे जुझारू नेता पीर मोहम्मद मूनिस की थी.

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    समाप्त

    चंपारण: जहां गांधी को मिला नया नाम, 'बापू'

    जब गांधीजी ने सूट-बूट छोड़ धोती अपनाई

    इमेज स्रोत,

    EASTCHAMPARAN.BIH.NIC.IN

    इमेज कैप्शन,

    पूर्वी चंपारण का वो 'बुनियादी विद्यालय' जिसकी नींव खुद महात्मा गांधी ने रखी थी

    राजकुमार शुक्ल

    चंपारण शताब्दी समारोह के मौक़े पर यह प्रश्न जायज़ हो सकता है बशर्ते नए दस्तावेज़ सामने हों और समझ में इज़ाफ़ा करते हों, लेकिन गल्प को प्रमाण मान लेना उसके साथ कतई न्याय नहीं करता.

    चंपारण पर उपलब्ध बेशुमार सामग्री में सबसे प्रामाणिक और प्राथमिक स्रोत महात्मा गांधी की आत्मकथा है.

    महात्मा ने उसमें एक से अधिक बार लिखा कि उन्हें चंपारण कौन लाया. ज़ाहिर है, वह नाम राजकुमार शुक्ल का है.

    कलकत्ता से बांकीपुर (पटना) की रेल यात्रा में राजकुमार शुक्ल महात्मा के साथ थे और मुज़फ्फ़रपुर रेलवे स्टेशन पर रात एक बजे गांधी को आचार्य जेबी कृपलानी से उन्होंने मिलवाया.

    कृपलानी महात्मा से पत्रों के ज़रिए परिचित थे, लेकिन उनसे कभी मिले नहीं थे. कृपलानी की किताब 'महात्मा गांधी' में यही हवाला मिलता है.

    'गांधी जी पर मोदी जी का भाषण ओजस्वी था'

    क्या अपने आख़िरी सालों में अकेले पड़ गए थे गांधी?

    इमेज स्रोत, GETTY IMAGES

    'चंपारण में महात्मा गांधी'

    बाबू राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा यही कहती है. सन 1919 में लिखी उनकी किताब 'चंपारण में महात्मा गांधी' का ब्योरा इसकी पुष्टि करता है.

    डीजी तेंदुलकर का विवरण इसी से मेल खाता है. दीगर पुस्तकें, चिट्ठियां और ख़तो-किताबत यही तस्दीक करते हैं.

    राजकुमार शुक्ल की कैथी लिपि में लिखी 1917 की डायरी तो है ही जिसमें एक-एक दिन बल्कि कई जगह एक-एक घंटे का ब्योरा दर्ज है.

    अपने बारीक़ सवालों का संतोषजनक जवाब न मिलने पर महात्मा शुक्ल पर नाराजगी ज़रूर व्यक्त करते हैं पर आत्मकथा में यह भी कहते हैं कि उस 'भोले-भाले किसान ने मेरा दिल जीत लिया.'

    तो फिर इस सवाल का मतलब क्या है कि महात्मा को चंपारण कौन ले आया?

    वो औरत जिन्होंने विदेश में पहली बार फहराया भारत का झंडा

    पेश किया था पहला बजट, बाद में बने पाक पीएम

    इमेज स्रोत,

    BIHAR HINDI SAHITYA SAMMELAN

    पीर मोहम्मद मूनिस

    बल्कि सवाल यह भी उठता है कि क्या इसका अर्थ वाकई केवल इतिहास की पड़ताल है?

    या ऐसा प्रश्न उन स्थानीय नायकों का अपमान है जिन्होंने गांधी के चंपारण आने से पहले नील के विरुद्ध किसानों को संगठित करने में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया?

    पीर मोहम्मद मूनिस यक़ीनन इन नायकों में शामिल थे. राजकुमार शुक्ल का निधन 1929 में हुआ, लेकिन मूनिस आज़ादी के दो साल बाद 1949 तक जीवित थे.

    लोगों के हक़ के लिए आख़िरी दम तक संघर्ष करते रहे. हिंदी के पहले खोजी और अभियानी पत्रकार मूनिस ने चंपारण का दर्द दुनिया तक पहुंचाया.

    पूरे जीवन अंग्रेज़ों की आंख की किरकिरी बने रहे. गणेश शंकर विद्यार्थी के अख़बार 'प्रताप' और दूसरी जगह छपे उनके लेख इसका प्रमाण हैं.

    'जब गोडसे ने गांधीजी पर दागी थी तीसरी गोली'

    कहां हुई थी पहली गणतंत्र दिवस परेड

    इमेज स्रोत, TARA SINHA इमेज कैप्शन,

    इस दुर्लभ तस्वीर में महात्मा गांधी राजेंद्र प्रसाद के साथ

    ऐतिहासिक चिट्ठी

    बेतिया के मूनिस उस दौर के बिहार के अकेले पत्रकार हैं जिनके घर महात्मा गांधी गए.

    उर्दू के साथ हिंदी में महारत, भाषा पर पकड़ और विषय की समझ का उनसे बेहतर उदाहरण उपलब्ध नहीं है.

    महात्मा के चंपारण प्रवास में वह लगातार उनके साथ बने रहे. अप्रैल 1917 में महात्मा के आगमन से पहले उनसे पत्र व्यवहार करते रहे.

    लेकिन इसे इस हद तक खींचना कि गांधी को वही चंपारण ले आए, मूनिस के साथ अन्याय होगा. उद्भट पत्रकार और लेखक मूनिस ने अपने लेखों में कहीं ऐसा दावा नहीं किया.

    माना जाता है कि महात्मा को चंपारण आमंत्रित करने वाली राजकुमार शुक्ल की ऐतिहासिक चिट्ठी पीर मोहम्मद मूनिस ने लिखी थी.

    क्या भारतीय गणतंत्र के पिता थे सरदार पटेल?

    सात दशक बाद भी गांधी से इतना ख़ौफ़ क्यों?

    स्रोत : www.bbc.com

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    Mohammed 5 day ago
    4

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